श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है । आज प्रस्तुत है एक सार्थक “यात्रा संस्मरण – गांधी के ये गांव“। )
☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 78 ☆
☆ यात्रा संस्मरण – गांधी के ये गांव ☆
लोकनायक जय प्रकाश नारायण की जयंती पर 11 अक्टूबर 2014 को “आदर्श ग्राम योजना” लांच की गई थी इस मकसद के साथ कि सांसदों द्वारा गोद लिया गांव 11 अक्टूबर 2016 तक सर्वांगीण विकास के साथ दुनिया को आदर्श ग्राम के रूप में नजर आयेगा परन्तु कई जानकारों ने इस योजना पर सवाल उठाते हुए इसकी कामयाबी को लेकर संदेह भी जताया था जो आज सच लगने लगा है।
शहरों में रहने वाले जो घूमने के शौकीन हैं उन्हें कभी सांसदों के द्वारा गोद लिए गांवों की यात्रा भी करना चाहिए। आम आदमी के अंदर उन गांवों की सूरत देखकर योजना के क्रियान्वयन पर चिंता की लकीरें उभरेगीं तो शायद कुछ विकास होगा। ये बात सही है कि सरकार का मकसद इस योजना के जरिए देश के छै लाख गांवों को उनका वह हक दिलाना था जिसकी परिकल्पना स्वाधीनता संग्राम के दिनों में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने की थी। गांधी की नजर में गांव गणतंत्र के लघु रूप थे, जिनकी बुनियाद पर देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था की इमारत खड़ी है।
प्रधानमंत्री की अभिनव आदर्श ग्राम योजना में अधिकांश ग्रामों को गोद लिए तीन साल से ज्यादा गुजर गया है पर कहीं कुछ पुख्ता नहीं दिख रहा है ये भी सच है कि दिल्ली से चलने वाली योजनाएं नाम तो प्रधानमंत्री का ढोतीं हैं मगर गांव के प्रधान के घर पहुंचते ही अपना बोझा उतार देतीं हैं। एक पिछड़े आदिवासी अंचल के गांव की सरपंचन घूंघट की आड़ में कुछ पूछने पर इशारे करती हुई शर्माती है तो झट सरपंच पति पानी की विकट किल्लत की बात करने लगता है – नल नहीं लगे हैं, हैंडपंप नहीं खुदे और न ही बिजली पहुंची। आदर्श ग्राम योजना के बारे में किसी को कुछ नहीं मालुम…… ।
आदर्श ग्राम योजना के तहत गांव के विकास में वैयक्तिक, मानव, आर्थिक एवं सामाजिक विकास की निरंतर प्रक्रिया चलनी चाहिए। वैयक्तिक विकास के तहत साफ-सफाई की आदत का विकास, दैनिक व्यायाम, रोज नहाना और दांत साफ करने की आदतों की सीख, मानव विकास के तहत बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाएं, लिंगानुपात संतुलन, स्मार्ट स्कूल परिकल्पना, सामाजिक विकास के तहत गांव भर के लोगों में विकास के प्रति गर्व और आर्थिक विकास के तहत बीज बैंक, मवेशी हॉस्टल, मिट्टी हेल्थ कार्ड आदि आते हैं।
मध्यप्रदेश के सुदूर प्रकृति की सुरम्य वादियों के बीच बैगा बाहुल्य गांव के पड़ोस से कल – कल बहती पुण्य सलिला नर्मदा और चारों ओर ऊंची ऊंची हरी भरी पहाडि़यों से घिरा ये गांव एक पर्यटन स्थल की तरह महसूस होता है परन्तु गरीबी, लाचारी, बेरोजगारी गांव में इस कदर पसरी है कि उसका कलम से बखान नहीं किया जा सकता है।गोद लिये गांव में साक्षरता का प्रतिशत बहुत कमजोर और चिंतनीय होता है।
प्रधानमंत्री की इस योजना में गांव के लोगों को कहा गया था कि वे अपने सांसद से संवाद करें। योजना के माध्यम से लोगों में विकास का वातावरण पैदा हो, इसके लिए सरकारी तंत्र और विशेष कर सांसद समन्वय स्थापित करें, पर बेचारे सांसद दुनिया भर के ऊंटपटांग कामों में व्यस्त रहते हैं तो गोद लिए गांव की कौन परवाह करेगा। प्रधानमंत्री ज्यादा उम्मीद करते हैं बेचारे सांसद साल डेढ़ साल तक ऐसे गांव नहीं पहुंच पाते तो इसमें सांसदों का दोष नहीं हैं उनके भी तो लड़का बच्चा और घरवाली है। ऐसे गांवों में जनधन खाते थोड़े बहुत खोले जाने की खबर यत्र तत्र मिलती है पर उससे कोई फायदा नहीं दिखा। प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा से कोई फायदा किसी को मिला नहीं। ऐसे गांव में बैंक ऋण के सवाल पर कुछ
लोग बताते हैं कि एक बार लोन से कोई कंपनी 5000 रुपये का बकरा लोन से दे गई ब्याज सहित पूरे पैसे वसूल कर लिए और बकरा भी मर गया, गांव भर के कुल नौ गरीबों को एक एक बकरा दिया गया था, बकरी नहीं दी गई। सब बकरे दिए गए जो कुछ दिन बाद मर गए।
ऐसे गांव में खुशीराम मिल जाते हैं जो पांचवीं फेल होते हैं और भूखे रहकर भी हंसते हैं। कोई रोजगार के लिए प्रशिक्षण नहीं मिला मेहनत मजदूरी करके एक टाइम का पेट भर पाते हैं, चेंज की भाजी में आम की अमकरिया डालके “पेज “पी जाते हैं। सड़क के सवाल पर तुलसी बैगा ने बताया कि गांव के मुख्य गली में सड़क जैसी बन गई है कभी कभार सोलर लाइट भी चौरस्ते में जलती दिखती है। कभी-कभी पानी भी नल से आ जाता है पर नलों में टोंटी नहीं है।
दूसरी पास फगनू बैगा जानवर चराने जंगल ले जाते हैं खेतों में जुताई करके पेट पालते हैं जब बीमार पड़ते हैं तो नर्मदा मैया के भजन करके ठीक हो जाते हैं।
ऐसे गांव में प्रायमरी, मिडिल और हाईस्कूल की दर्ज संख्या के अनुसार स्कूल में शिक्षकों का भीषण अभाव देखा गया है। ऐसे स्कूलों में बच्चों से बातचीत करो तो सब कहते हैं कि वे बड़े होकर देश के प्रधानमंत्री बनेंगे पर वर्तमान में कौन प्रधानमंत्री है इस बात पर ठहाके लगाकर हंसने लगे।
© जय प्रकाश पाण्डेय