श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़  सकते हैं ।

आज प्रस्तुत है  “साहबनामा ” पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – व्यंग्य संग्रह – साहबनामा # 89 ☆ 
 पुस्तक चर्चा

पुस्तक – साहबनामा 

लेखक –  श्री मुकेश नेमा  

प्रकाशक – मेन्ड्रेक पब्लिकेशन, भोपाल

पृष्ठ – २२४

मूल्य – २२५ रु

☆ पुस्तक चर्चा ☆ साहबनामा – श्री मुकेश नेमा ☆ समीक्षा – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र☆

कहा जाता है कि दो स्थानो के बीच दूरी निश्चित होती है. पर जब जब कोई पुल बनता है, कोई सुरंग बनाई जाती है या किसी खाई को पाटकर लहराती सड़क को सीधा किया जाता है तब यह दूरी कम हो जाती है. मुकेश नेमा जी का साहबनामा पढ़ा. वे अपनी प्रत्येक रचना में सहज अभिव्यक्ति का पुल बनाकर, दुरूह भाषा के पहाड़ काटकर स्मित हास्य के तंज की सुरंग गढ़ते हैं और बातों बातो में अपने पाठक के चश्मे और अपनी कलम के बीच की खाई पाटकर आड़े टेढ़े विषय को भी पाठक के मन के निकट लाने में सफल हुये हैं.

साहबनामा उनकी पहली किताब है. मेन्ड्रेक पब्लिकेशन, भोपाल ने लाइट वेट पेपर पर बिल्कुल अंग्रेजी उपन्यासो की तरह बेहतरीन प्रिंटिग और बाइंडिग के साथ विश्वस्तरीय किताब प्रस्तुत की है. पुस्तक लाइट वेट है,  किताब रोजमर्रा के लाइट सबजेक्ट्स समेटे हुये है. लाइट मूड में पढ़े जाने योग्य हैं. लाइट ह्यूमर हैं जो पाठक के बोझिल टाइट मन को लाइट करते हैं. लेखन लाइट स्टाईल में है पर कंटेंट और व्यंग्य वजनदार हैं.

अलटते पलटते किताब को पीछे से पढ़ना शुरू किया था, बैक आउटर कवर पर निबंधात्मक शैली में उन्होने अपना संक्षिप्त परिचय लिखा है, उसे भी जरूर पढ़ियेगा, लिखने की  स्टाईल रोचक है. किताब के आखिरी पन्ने पर उन्होने खूब से आभार व्यक्त किये हैं. किताब पढ़ने के बाद उनकी हिन्दी की अभिव्यक्ति क्षमता समझकर मैं लिखना चाहता हूं कि वे अपने स्कूल के हिन्दी टीचर के प्रति आभार व्यक्त करना भूल गये हैं. जिस सहजता से वे सरल हिन्दी में स्वयं को व्यक्त कर लेते हैं, अपरोक्ष रूप से उस शैली और क्षमता को विकसित करने में उनके बचपन के हिन्दी मास्साब का योगदान मैं समझ सकता हूं.

जिस लेखक की रचनाये फेसबुक से कापी पेस्ट/पोस्ट होकर बिना उसके नाम के व्हाट्सअप के सफर तय कर चुकी हों उसकी किताब पर कापीराइट की कठोर चेतावनी पढ़कर तो मैं समीक्षा में भी लेखों के अंश उधृत करने से डर रहा हूं. एक एक्साईज अधिकारी के मन में जिन विषयो को लेकर समय समय पर उथल पुथल होती रही हो उन्हें दफ्तर, परिवार, फिल्मी गीतों, भोजन, व अन्य विषयो के उप शीर्षको क्रमशः साहबनामा में १८ व्यंग्य, पतिनामा में ८, गीतनामा में १०, स्वादनामा में १०, और संसारनामा में १६ व्यंग्य लेख, इस तरह कुल जमा ६२ छोटे छोटे,विषय केंद्रित सारगर्भित व्यंग्य लेखो का संग्रह है साहबनामा.

यह लिखकर कि वे कम से कम काम कर सरकारी नौकरी के मजे लूटते हैं, एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी होते हुये भी लेखकीय अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का जो साहस मुकेश जी ने दिखाया है मैं  उसकी प्रशंसा करता हूं. दुख इस बात का है कि यह आइडिया मुझे अब मिल रहा है जब सेवा पूर्णता की कगार पर हूं .

किताब के व्यंग्य लेखों की तारीफ में या बड़े आलोचक का स्वांग भरने के लिये व्यंग्य के प्रतिमानो के उदाहरण देकर सच्ची झूठी कमी बेसी निकालना बेकार लगता है. क्योंकि, इस किताब से  लेखक का उद्देश्य स्वयं को परसाई जैसा स्थापित करना नही है. पढ़िये और मजे लीजीये. मुस्कराये बिना आप रह नही पायेंगे इतना तय है. साहबनामा गुदगुदाते व्यंग्य लेखो का संग्रह है.

इस पुस्तक से स्पष्ट है कि फेसबुक का हास्य, मनोरंजन वाला लेखन भी साहित्य का गंभीर हिस्सा बन सकता है. इस प्रवेशिका से अपनी अगली किताबों में  कमजोर के पक्ष में खड़े गंभीर साहित्य के व्यंग्य लेखन की जमीन मुकेश जी ने बना ली है. उनकी कलम संभावनाओ से भरपूर है.

रिकमेंडेड टू रीड वन्स.

समीक्षक .. विवेक रंजन श्रीवास्तव

ए १, शिला कुंज, नयागांव, जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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