(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का एक विचारणीय कविता ‘सुनीता विलियम्स की अंतरिक्ष यात्रा पर’। इस सार्थकअतिसुन्दर कविता के लिए श्री विवेक रंजन जी की लेखनी को नमन। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 89 ☆
☆ कविता – सुनीता विलियम्स की अंतरिक्ष यात्रा पर ☆
बेटी देखो !
वह जो प्रकाशमान तारे की तरह
मंथर गति से पूर्व से पश्चिम की ओर
पृथ्वी का चक्कर लगाता प्रकाश पुंज है
वह कृत्रिम उपग्रह है
इसमें सवार है हमारी सुनीता विलियम्स
जो प्रतिनिधित्व कर रही है विश्व की बेटियों का
ब्रम्हाण्ड में
विश्व के कैनवास को विस्तार देकर
अंतरिक्ष में रच दी है ऐतिहासिक रांगोली
सुनीता ने
सुनीता
समन्वित शक्ति है सरस्वती और दुर्गा की
सुनीता पंड्या से
सुनीता विलियम्स बनकर
तोड डाले थे उसने संकीर्णता के कठमुल्ले दायरे
और वैश्विक सोच की लिखी थी इबारत
सुनीता
बे आवाज तमाचा है उनके गालो का
जो सुनिताओं को घूंघट में कैद रखना चाहते है
स्त्री विमर्श के जीते जागते
धारावाहिक उपन्यास है
कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स
जो इंद्रधनुष से आगे
ब्रम्हाण्ड में लिखे जा रहे है
साहस की स्याही से।
© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर
ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८
मो ७०००३७५७९८
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
एक सही सोच की निर्भिक अभिव्यक्ति