श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं “संतोष के दोहे”। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 68 ☆
☆ संतोष के दोहे ☆
चाहत दौलत की बढ़ी, चाहें ऊँचा नाम
सदाचार दुबका खड़ा, होते खोटे काम
रखें सोच संकीर्ण जो, उनके बिगड़ें काम
सात्विक सच्ची सोच से, होता ऊँचा नाम
जीवन सूना सा लगे, अगर न हो पुरुषार्थ
सच्चा मानव वही है, जो करते परमार्थ
बढ़ते पूंजीवाद से, शोषण के नव काम
मेहनत कश को न मिलें, श्रम के सच्चे दाम
सभा, रैलियां, पोस्टर, लो आ गए चुनाव
घर-घर नेता पहुँचते, दिखा रहे सब दांव
© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
सर्वाधिकार सुरक्षित
आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799
शानदार रचना