श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है जिंदगी की हकीकत बयां करती एक भावप्रवण कविता “पतन”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 28 ☆ पतन ☆
इस सर्द मौसम में
हमारे शरीर का खून भी
जम सा गया है
नाड़ियों में
रक्त का प्रवाह
धीरे धीरे
थम सा गया है
अब गर्मी हो या सर्दी
धूप हो या बारिश
हमें फर्क नहीं पड़ता है
हमारा निर्जीव शरीर
अब कहां लड़ता है
आंखें पथरा सी गई है
कान सुन्न है
जिव्हा लकवाग्रस्त है
लगता है जीते जी
हमारे जीवन का सूर्य
हो रहा अस्त है
हर रोज हमारा शरीर
एक नया जख्म खा रहा है
जख्म से खून के साथ
मवाद भी
बाहर आ रहा है
हम इसे चुपचाप
सह रहे हैं
सदा की तरह
किसी से कुछ नहीं
कह रहे हैं
शायद,
हम मर तो
कब के चुके हैं
पर हमें जीवित
होने का भरम है
सांसें तो
कब की थम चुकी है
पर शरीर अब भी गरम है
हमारा जीवन मूल्यों को बचाने
यह व्यर्थ जतन है
क्योंकि,
हर पल
हर घड़ी
यहां पर
जीवन मूल्यों का
हो रहा पतन है ।
© श्याम खापर्डे
फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो 9425592588
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈