श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है  “हाइबन- जैसे का तैसा। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 75☆

☆ हाइबन- जैसे का तैसा ☆

प्रकृति की हर चीज बदलती है । मगर कुछ चीजें आज भी ज्यों के त्यों बनी हुई है। जी हां, आपने सही सुना । हम कछुए की ही बात कर रहे हैं ।

इस प्रकृति में कछुआ ही ऐसा प्राणी है जो करोड़ों वर्ष से जैसा का तैसा बना हुआ है। इसका जन्म तब हुआ था जब छिपकली, सांप, डायनासोर भी नहीं थे । यानी आज से 20 करोड़ों वर्ष पहले भी कछुआ इसी तरह दिखता था।

प्राकृतिक रूप से बिल्कुल शांत रहने वाले कछुए का खून उसी की तरह बिल्कुल ठंडा होता है। इसके शरीर में कहीं बाल नहीं होते हैं। आमतौर पर कछुए की उम्र 50 से 100 साल तक होती है । मगर 300 प्रजातियों वाले कछुए की उम्र 200 से 400 साल तक पाई गई है ।

इसका कवच बहुत ही कठोर होता है। इसी कारण इसकी पुराने समय में ढाल भी बनाई जाती थी। कठोर कवच वाले कछुए का शेर भी शिकार नहीं कर पाता है।

नदी किनारा~

कछुए पर झपटा

नन्हासा शेर।

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

01-02-21

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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Omprakash Kshatriya

बहुत ही बढ़िया प्रस्तुति आदरणीय । इस प्रस्तुति के लिए संपादक मंडल को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।