(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का एक बसंत पंचमी पर्व पर एक विशेष आलेख ‘वेलेंटाइन कहिये या बसन्त पंचमी।‘ इस सार्थक सामयिक एवं विचारणीय आलेख के लिए श्री विवेक रंजन जी की लेखनी को नमन। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 94 ☆
? वेलेंटाइन कहिये या बसन्त पंचमी ?
दार्शनिक चिंतन वेलेंटाइन डे को प्रकृति के बासन्ती परिवर्तन से प्राणियो के मनोभावों पर प्रभाव मानता है, बसंत पंचमी व वेलेंटाइन लगभग आस पास ही होते हैं, प्रतिवर्ष। स्पष्ट है सभ्यताओं के वैभिन्य में प्राकृतिक बदलाव को अभिव्यक्त करने की तिथियां किंचित भिन्न हो सकती हैं, प्रसन्नता व्यक्त करने का तरीका सभ्यता व संसाधनों के अनुसार कुछ अलग अलग हो सकता है, पर परिवेश के अनुकूल व्यवहार मनुष्य ही नही सभी प्राणियों में सामान्य है।
आज के युवा पश्चिम के प्रभाव में सारे आवरण फाड़कर अपनी समस्त प्रतिभा के साथ दुनिया में छा जाना चाहते है। इंटरनेट पर एक क्लिक पर अनावृत होती सनी लिओने सी बसंतियां स्वेच्छा से ही तो यह सब कर रही हैं।बसंत प्रकृति पुरुष है।वह अपने इर्द गिर्द रगीनियां सजाना चाहता है, पर प्रगति की कांक्रीट से बनी गगनचुम्बी चुनौतियां, कारखानो के हूटर और धुंआ उगलती चिमनियां बसंत के इस प्रयास को रोकना चाहती है।
भारत ने प्रेम की नैसर्गिक भावना को हमेशा एक मर्यादा में सुसभ्य तरीके से आध्यात्मिक स्वरूप में पहचाना है। राधा कृष्ण इस एटर्नल लव के प्रतीक के रूप में वैश्विक रूप में स्थापित हैं।
बसंत पंचमी कहें या वेलेंटाइन डे नारी सुलभ सौंदर्य, परिधान, नृत्य, रोमांटिक गायन में प्रकृति के साथ मानवीय तादात्म्य ही है। आज स्त्री के कोमल हाथो में फूल नहीं कार की स्टियरिंग थमाकर, जीन्स और टाप पहनाकर उसे जो चैलेंज वेलेंटाइन वाला जमाना दे रहा है, उसके जबाब में किसी नेचर्स एनक्लेव बिल्डिंग के आठवें माले के फ्लैट की बालकनी में लटके गमले में गेंदे के फूल के साथ सैल्फी लेती पीढ़ी ने दे दिया है, हमारी नई पीढ़ी जानती है कि उसे बसंत और वेलेंटाइन के साथ सामंजस्य बनाते हुये कैसे बजरंग दलीय मानसिकता से जीतते हुये अपना पिंक झंडा लहराना है। पुरुष और नारी के सहयोग से ही प्रकृति बढ़ रही है, उसे वेलेंटाइन कहे या बसन्त पंचमी।
© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर
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≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
बहुत ही सुंदर संवेदनशील अभिव्यक्ति, बधाई