डॉ भावना शुक्ल
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 82 – साहित्य निकुंज ☆
☆ अंतर्मन ☆
मन के झरोखे
में झाँका
मन को आँका।
हुई कुछ आहट
कैसी है फड़फड़ाहट।
वे थे ……
अंतर्मन के पृष्ठ
जिनमें थी यादें
जिनमे है प्यार-अपार
मनाते थे ख़ुशी से हर त्यौहार
माँ खूँट कर देती थी कजलियां
साथ थी सहेलियां…..
रहता था शाम का इन्तजार
हाथ में देते थे सब ममत्वरूपी धन
खुश हो जाता था मन
घर-घर मिलता था प्यार
वो पल था कितना यादगार
मन में रहेगी सदा चाहत
न होगी उन पलों की कभी आहट।
इसलिये
उन पलों को सहेजकर रख देते है
जब मन हुआ खोलकर चख लेते है।
काश अंतर्मन के झरोखे खुले रहे
खुली आँखों से सब सदा देखते रहे।
© डॉ.भावना शुक्ल
सहसंपादक…प्राची
प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120, नोएडा (यू.पी )- 201307
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈