श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं “संतोष के दोहे”। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 73 ☆
☆ संतोष के दोहे ☆
बुरा वक्त ही कराता, अपनों की पहचान
संकट में जो साथ दे, उसको अपना जान
वक्त बदलता है सदा, लें धीरज से काम
नई सुबह के साथ ही, मिलता है आराम
चलें वक्त के साथ हम, करें वक्त सम्मान
वक्त किसी का सगा नहिं, चलिए ऐसा मान
वक्त बदलते बदल गई, सबकी सारी सोच
नजर हटते ही हटा, नजरों का संकोच
वक्त बहुत बलवान है, क्या समझें नादान
पहिया रुके न वक्त का, होता है गतिमान
लगे वक्त भारी सदा, जब मुश्किल हालात
वक्त प्रबंधन कीजिये, करिये न सवालात
कभी हंसाता, रुलाता, अज़ब वक्त के खेल
जुदा कराता वक्त ही, वही कराता मेल
डर कर रहिये वक्त से, बुरी वक्त की मार
वक्त किसी का सगा नहिं, तेज वक्त की धार
वक्त की चक्की से पिसें, क्या राजा क्या रंक
बचे न कोई वक्त से, चलता है जब डंक
वक्त की पहचान करें, समय का सदुपयोग
भोग तभी हम पाएंगे, दुनिया के सब भोग
साँचा संग सद्गुरु का, झूठा जग ब्यवहार
आवे काम वक्त पड़े, बुद्धि,विवेक,विचार
साझेदारी दर्द की, करे जो सच्चा यार
खुशियों में तो सब यहां, बनते हैं दिलदार
लक्ष्य तय कर बढ़े चलें, संयम नियम के संग
सफल हों”संतोष”तभी, होगी दुनिया दंग
© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
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लाजवाब दोहे