श्री शांतिलाल जैन
(आदरणीय अग्रज एवं वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री शांतिलाल जैन जी विगत दो दशक से भी अधिक समय से व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी पुस्तक ‘न जाना इस देश’ को साहित्य अकादमी के राजेंद्र अनुरागी पुरस्कार से नवाजा गया है। इसके अतिरिक्त आप कई ख्यातिनाम पुरस्कारों से अलंकृत किए गए हैं। इनमें हरिकृष्ण तेलंग स्मृति सम्मान एवं डॉ ज्ञान चतुर्वेदी पुरस्कार प्रमुख हैं। श्री शांतिलाल जैन जी के साप्ताहिक स्तम्भ – शेष कुशल में आज प्रस्तुत है उनका एक व्यंग्य “बौने कृतज्ञ हैं, बौने व्यस्त हैं” । इस साप्ताहिक स्तम्भ के माध्यम से हम आपसे उनके सर्वोत्कृष्ट व्यंग्य साझा करने का प्रयास करते रहते हैं । व्यंग्य में वर्णित सारी घटनाएं और सभी पात्र काल्पनिक हैं ।यदि किसी व्यक्ति या घटना से इसकी समानता होती है, तो उसे मात्र एक संयोग कहा जाएगा। हमारा विनम्र अनुरोध है कि प्रत्येक व्यंग्य को हिंदी साहित्य की व्यंग्य विधा की गंभीरता को समझते हुए सकारात्मक दृष्टिकोण से आत्मसात करें। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – शेष कुशल # 18 ☆
☆ व्यंग्य – बौने कृतज्ञ हैं, बौने व्यस्त हैं ☆
वो हमारे घर आया करती थी, सिर पर टोकरा रखे, किसम किसम के बर्तनों से सजा टोकरा लिये. माँ उससे बर्तन ले लेती और बदले में पुराने कपड़े दे देती. फिर वो एक दूसरे अवतार में बदल गई, उसकी भूमिका भी बदल गई, उसका बेस भी बदल गया, उसके काम की व्याप्ति प्रदेश और देश के स्तर पर हो चली. मगर उसका मूल काम वही का वही रहा, अब उसके टोकरे में मिक्सर, कलर टीवी, स्कूटी, लैपटॉप, मंगलसूत्र, स्मार्ट फोन, फ्री वाईफ़ाई और साईकिल जैसी चीज़ें होती हैं, बदले में आपको उसके कहने पर महज़ एक वोट देना होता है. तस्दीक करना चाहते हैं आप? ध्यान से देखिये माई के टोकरे को, टोकरा इक्कीस-बाईस के बजट का. पूरे सवा दो लाख करोड़ रुपये का ऐलान चस्पा कर दिया गया है तमिलनाडु, केरल, बंगाल, असम के लिये. गिव, गेव, गिवन. उन्होने दे दिया है फिलवक्त रिस्पॉन्ड इन चारों राज्यों के वोटरों को करना है. ज्यादा कुछ नहीं, बैलट मशीन में उनकी छाप का बटन दबाकर आना है, बस हो गया, थैंक-यू. दर्जनों परियोजनाओं का शुभारंभ, भूमिपूजन या लोकार्पण उस राज्य में जहां चुनाव का तम्बू गड़ चुका. घबराईये नहीं आपके राज्य को भी मिलेगा, दो हजार चौबीस आने तो दीजिये. पुरानी पेंट सा कीमती वोट संभालकर रखियेगा अभी हम जरा दूसरे राज्यों में फेरी लगाकर आते हैं.
बर्तनों के उनके टोकरों ने अब तो स्टॉल का आकार ले लिया है, जनतंत्र के मेले में ‘फ्री-बीज़’ के स्टॉल्स, छांटो-बीनों हर माल एक वोट में. क्या करियेगा पुरानी पेंटों का – कम से कम एक पतीली ही ले लीजिये कि धरा रह जाएगा आपका वोट अठ्ठाईस तारीख की शाम पाँच बजे के बाद – हमें ही दे दीजिये, हम आपको साथ में एक बोतल भी दे रहे हैं. बाद में पेंट-कमीज़-वोट का क्या आचार डालियेगा. जब तक जनतंत्र है वोट की मंडी लगी पड़ी है. रंगीन टीवी, लैपटॉप और स्मार्ट-फोन – एक वोट में तीन आईटम फ्री बाबूजी. प्रोमो-कोड ‘VOTE’ डालिये और पाईये अपनी जात-बिरादारी के आदमी को मंत्री बनवाने का सुनहरा मौका. हमारी पार्टी को रेफर करिये और पाईये कैश-बैक सीधे खाते में. अभी मौका है, फिर पाँच साल तक न टोकरा रहेगा, न बर्तन, न पुरानी पेंटों पर एक्सचेंज की सुविधा.
जनतंत्र के मेले में दरियादिली की चकाचौंध इस कदर मची है कि दाताओं के मन का अंधियारा भांप नहीं पाते आप. इसका मतलब यह भी नहीं कि अंधेरा पसरा नहीं है. कृत्रिम उजास है, चुनाव की बेला में ‘गुडी-गुडी’ का एहसास कराता हुआ. अधिसूचना के जारी होते ही पाँच साल का स्याह समां गुलाबी हो उठता है, वोटिंग की शाम से पाँच साल के लिये काला हो जाने की नियति लिये. सारी चकाचौंध बस मशीन का खटका दबाने की घड़ी तक ही है, फिर तो अंधियारा ही अंधियारा है. अंधियारा बेरोजगारी का, महंगाई का, मुफ़लिसी का, बेबसी का. स्मार्ट फोन एक नहीं दो ले लीजिये – रोजगार नहीं दे पायेंगे.
सुपर-रिच घरों के कपड़ों में निकलते हैं बिग-टिकट इलेक्टोरल बॉन्ड, टोकरों में धरे महंगे सरोकार उन्ही के लिये हैं. टुच्चे प्रतिफल हैं आपके लिये – सस्ते घिसे पुराने कपड़ों के बद्दल. पुराने कपड़ों के ढ़ेर से बने चढ़ाव बौने नायकों को उंचे ओहदों तक पहुँचा सकते हैं. पहुँचा क्या सकते हैं कहिये कि पहुँचा दिये हैं, आसन जमा लिया है उन्होने वहाँ. वे वहाँ बने रहें इसी में उस एक प्रतिशत का फायदा है जो काबिज हैं मुल्क की सत्तर प्रतिशत संपदा पर. बौने जब पुरानी कमीज़-पेंट ले जाते हैं तब वे चुपके से जनतंत्र पर से आपका भरोसा भी ले जाते हैं और आपको पता भी नहीं चल पाता. बौने कृतज्ञ हैं – बर्तनवाली माई ने राह जो दिखाई है. ध्यान से देखिये – फिलवक्त, बौने इसी लेन-देन में व्यस्त हैं.
© शांतिलाल जैन
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≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
शानदार व्यंग, मज़ा आ गया, बहुत बहुत बधाई
शांतिलाल जी