श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है महिला दिवस पर सार्थक एवं अतिसुन्दर भावप्रवण कविता “डर ”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 34 ☆
☆ डर ☆
वो कुछ कहना चाहता है
उसके अंदर का
काव्य का सागर
बहना चाहता है
उसके पास शब्दों कीं
कमी नहीं है
उसकी सृजन क्षमता
थमी नहीं है
उसके सीने में
अंगारों की तपिश है
उसके चेहरे पर
अनोखी कशिश है
उसकी आंखों में
दर्द भरा तूफान है
उसकी कांपती पलकों में
भयभीत इन्सान है
उसकी जिव्हा पर
नये तराने है
उसके होंठों पर
मुक्ति के फसाने है
वो जानता है-
वो बोलेगा तो
कहीं ना कहीं
ज्वालामुखी फूट पड़ेगा
उबलता हुआ लावा
शायद
नया इतिहास गढ़ेगा
फिर- सामंतवादी लोग
उसकी रचनाओं को जलायेंगे
उसके उपर निराधार
आरोप लगायेंगे
इसलिए-
वो कुछ लिखने से
वो कुछ कहने से
डरता है
सच्चा कलमकार
होकर भी
एकांतवास में
गुमसुम रहता है
वो आजकल डरकर
बस
चुप है,
चुप है
और
चुप है.
© श्याम खापर्डे
फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो 9425592588
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈