श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(वरिष्ठ साहित्यकार एवं अग्रज श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी स्वास्थ्य की जटिल समस्याओं से  सफलतापूर्वक उबर रहे हैं। इस बीच आपकी अमूल्य रचनाएँ सकारात्मक शीतलता का आभास देती हैं। इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी होली के रंग की एक रचना हम कुछ तो भी हैं……. । )

☆  तन्मय साहित्य  #87 ☆

 ☆ हम कुछ तो भी हैं……. ☆

छद्मसिरी साहित्य शिरोमणि

ये भी, वो भी हैं

नीरज, निराला भले नहीं

पर हम कुछ तो भी हैं।

 

फोटो छपती है अपनी

प्रतिदिन अखबारों में

नाम हमारा चर्चित

साहित्यिक फ़नकारों में

पदम सिरी मिलने की

उम्मीदें हमको भी है।

दिनकर नीरज…….।।

 

सोशल मीडिया पर भी

तो हम ही हम छाएँ हैं

कितने ही सम्मान

यहाँ पर हमने पाएँ हैं,

मोबाईल ने सम्मानों की

फसलें बो दी है।

दिनकर नीरज…….।।

 

लाज शर्म संकोच छोड़

मुँह मिट्ठू स्वयं बनें

पाने को अमरत्व, सतत

जारी प्रयास अपने,

कविताई के विकट

संक्रमण के हम रोगी हैं

दिनकर नीरज…….।।

 

बात करो मत उसकी

वो हमसे ही सीखा है

क्या सरजन है उसका

रूखा, सूखा, फीका है,

हम तो कर देते अमान्य

लिखता वह जो भी है।

दिनकर नीरज……..।।

 

रोज रोज आते सुंदर

कविताओं के सपने

साधें शब्दजाल से

सब को, हो जाएँ अपने

लिखा, भूख – रोटी पर

खुद कविताएँ रो दी है।

दिनकर नीरज…….।।

 

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश0

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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