श्री शांतिलाल जैन
(आदरणीय अग्रज एवं वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री शांतिलाल जैन जी विगत दो दशक से भी अधिक समय से व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी पुस्तक ‘न जाना इस देश’ को साहित्य अकादमी के राजेंद्र अनुरागी पुरस्कार से नवाजा गया है। इसके अतिरिक्त आप कई ख्यातिनाम पुरस्कारों से अलंकृत किए गए हैं। इनमें हरिकृष्ण तेलंग स्मृति सम्मान एवं डॉ ज्ञान चतुर्वेदी पुरस्कार प्रमुख हैं। श्री शांतिलाल जैन जी के साप्ताहिक स्तम्भ – शेष कुशल में आज प्रस्तुत है उनका एक विचारणीय व्यंग्य “हरदम बेचैन बनाये रखनेवाली दुनिया में अलीबाबा का प्रवेश” । इस साप्ताहिक स्तम्भ के माध्यम से हम आपसे उनके सर्वोत्कृष्ट व्यंग्य साझा करने का प्रयास करते रहते हैं । व्यंग्य में वर्णित सारी घटनाएं और सभी पात्र काल्पनिक हैं ।यदि किसी व्यक्ति या घटना से इसकी समानता होती है, तो उसे मात्र एक संयोग कहा जाएगा। हमारा विनम्र अनुरोध है कि प्रत्येक व्यंग्य को हिंदी साहित्य की व्यंग्य विधा की गंभीरता को समझते हुए सकारात्मक दृष्टिकोण से आत्मसात करें। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – शेष कुशल # 20 ☆
☆ व्यंग्य – हरदम बेचैन बनाये रखनेवाली दुनिया में अलीबाबा का प्रवेश ☆
“खुलजा सिमसिम” अलीबाबा ने कहा मगर दरवाजा नहीं खुला. इधर उसे मुद्राओं की सख्त जरूरत थी और उधर ‘पासवर्ड इन्करेक्ट’. उसने सिमसिम को खिमसिम ट्राय करके देखा, नहीं लगा. उसे लगा कि शायद पिछली बार जब उसे पासवर्ड बदलने को मजबूर किया गया था तब उसने सि को खि कर दिया होगा. उसने सिमखिम ट्राय किया वो भी नहीं लगा. सिमसिम@1958, सिमखिम$1958 ट्राय किये. नहीं लगे. पाँच अटैम्प्ट पूरे हो जाने पर अलीबाबा लॉक कर दिया गया. उसने फरगॉट पासवर्ड पर क्लिक किया तो कन्सोल पर क्वेस्चन वही उभर कर सामने आया जो उसने इलेक्ट्रॉनिक दरवाजा सेट-अप कराते समय चुना था – ‘नेम यूअर फेवरिट पेट एनिमल’. माल ढ़ोनेवाले गधों के अतिरिक्त अलीबाबा के पास कोई और जानवर था नहीं और इतने सारे गधों के नाम में से उसने किसका नाम रखा था याद नहीं आ रहा. एक बार उसने एक प्रिय गधे के नाम पर पासवर्ड रखा, और जब जब पासवर्ड बदलना पड़ा उसी समय गधे का नाम भी बदल लिया. दुर्योग से वो गधा अल्लाह को प्यारा हो गया. अलीबाबा फिर पुराने ढर्रे पर लौट आया. मेमोरी बढ़ाने के उसने अनेक जतन किये, एवकाडो फल खाया, ब्लूबेरी खाई, बेगमजान से सिर में बादाम तेल की मालिश करवाई, दिन में छह बार शहद के साथ कलौंजी चाटी, यूनानी नेमोनिक तकनीक का प्रयोग किया, मगर तब भी बेवफा मेमोरी उस दिन दगा दे गई जिस दिन अलीबाबा को मुद्राओं की सख्त जरूरत थी.
वैसे कुछ साल पहले तक ऐसा नहीं था. सिम्पल ‘सिमसिम’ से काम चल ही रहा था. फिर उसने गुफा में एक इलेक्ट्रॉनिक गेट लगवा लिया. इसके साथ ही वो बार बार बदले जानेवाले स्ट्रांग पासवर्ड की जटिल और बेचैन बनाये रखनेवाली दुनिया में प्रवेश कर गया था. उसे हर समय एक धुकधुकी सी बनी रहती – पासवर्ड भूल न जाऊँ. कभी-कभी वो इतना घबराया हुआ रहता कि पासवर्ड लिखकर रख लेता, मगर लिखा हुआ कहाँ रखा है, एनवक्त पर यह भी याद नहीं पड़ता. मिल जाये तो पता लगता है कि इस लिखे के बाद तो पाँच बार बदला जा चुका है पासवर्ड. फिलवक्त, उसे मुद्राओं की सख्त जरूरत है और पासवर्ड लग नहीं रहा.
‘कहाँ हो इतनी देर से ?’ – फोन पर मिसेज अलीबाबा थीं.
‘आ तो रहा हूँ, पासवर्ड लग नहीं रहा.’
‘मोर्गियाना एट सिक्स्टीन लगाकर देखो. वही कलमुंही चढ़ी रहती है तुम्हारी जुबान पर.’ – मिसेज अलीबाबा को घर की नौकरानी पर शक रहता था.
‘कुछ भी मत बको, बेगमजान’
‘बहुत दिनों से तुम्हारी लीला देख रही हूँ मैं. पासवर्ड याद रखने के बहाने दिन भर उसका नाम जपते रहते हो.’ – मिसेस अलीबाबा बिफर पड़ीं.
“मुसीबतें तो सारी तुम्हारे नाम से शुरू होती हैं, बेगमजान. आज भी यही हुआ लगता है, तुम्हारा नाम और शादी का साल मिलाकर बनाया था पासवर्ड. केरेक्टर गलत हो रहा है शायद.”
“हाय अल्लाह, मेरा केरेक्टर बखान रहे हो.”
“अरे वो वाला केरेक्टर नहीं बेगमजान…..”
“वो मैं सब समझती हूँ, घर आओ तो बताती हूँ तुम्हारे पूरे खानदान का केरेक्टर. मुझे केरिये हैं के केरेक्टर गलत है, मुझे!!” – बुक्का फाड़ कर रोने लगीं मिसेज अलीबाबा. पासवर्ड के कारण वो एक नई मुसीबत में पड़ गया. खैर, उससे वह बाद में घर जाकर निपट लेगा फिलहाल जरूरी दरवाजा खुल नहीं रहा.
अलीबाबा ने कॉल सेंटर फोन किया. एक मधुर स्वर ने उसे वेलकम कहा, फिर अपनी लैंगवेज़ चुनने को कहा. फारसी का ऑप्शन था नहीं और अंग्रेज़ी अलीबाबा को बस काम चलाऊ ही आती थी. कुछेक सवालों को जैसे तैसे पकड़कर बात करने की कोशिश की तो समझ में आया कि कंपनी पासवर्ड रिसेट नहीं करेगी, लॉक सिस्टम पूरा रिप्लेस करना पड़ेगा जो काफी महंगा है. उसने मिन्नतें की, मगर हर सेंटेन्स के बाद कोकिल कंठ क्षमा मांगते हुवे उसे वही वही रिप्लाय रिपीट कर देती. खीज गया अलीबाबा. ‘आपका दिन शुभ हो’ से संवाद खत्म हुआ.
और चालीस चोर!! वे साइबर क्रिमिनल्स की भूमिका में पर्शिया से लेकर इधर झूमरी तलैया और उधर नाईजीरिया तक फैल गये हैं. अब वे तेल के पीपों में भरकर नहीं आते, सिस्टम में ट्रोजन हार्स की तरह घुस जाते हैं. अलीबाबा अपना पासवर्ड रिकवर कर पाये न कर पाये – चालीस चोरों में कोई किसी दिन उसे क्रेक कर ही लेगा. उसकी चिंता का यही सबसे बड़ा सबब है. फ़िलवक्त, वह सिर पकड़ कर गुफा के बंद दरवाजे के बाहर बैठा है. घर वापसी के लिये पास ही निरापद, निस्तब्ध, नीरव मुद्रा में खड़े गधे ने अपने मालिक को इतना निराश, उदास, चिंतित, घबराया सा, बेचैन कभी नहीं देखा. अलीबाबा की दुनिया इतनी जटिल भले हो गई हो उसकी सवारी की दुनिया अब भी वैसी की वैसी है.
© शांतिलाल जैन
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