श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक सार्थक एवं विचारणीय रचना “वाह – वाह में बह जाना”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 60 – वाह – वाह में बह जाना

बगीचे की बाड़ी काँटेदार बबूल से ही बनाई जाती है। कड़वे अनुभव ही उन्नति का मार्ग प्रशस्त करते हैं। ऐसा कहना नेकीलाल जी का है। यदि ये, नेकी कर दरिया में न डालते चलते तो कैसे इतने सारे लोग अपना अलग – अलग आशियाँ बसाते। जान बूझ कर की गई नेकी ही बहुत से रास्ते बनाते हुए चलती है। कड़वाहट न फैले इसलिए उपेक्षा में भी परीक्षा का भाव लाते हुए आगे चलते जाना है। जो जैसा करेगा वैसा भरेगा, इसी सोच के साथ उम्मीदलाल स्वयं को तराशते हुए बढ़ रहे हैं। हालाँकि हर पल उनके सिर पर खतरे की तलवार लटक रही है, फिर भी कुछ न कुछ नया सीखते हुए अपने समय का सदुपयोग कर स्वयं को उन्नत करने की सोच लिए हुए आज तक अपनी जगह पर विराजमान है। ये बात सही है कि अब उनकी पूछ – परख कम होने लगी है, पर चलो कोई बात नहीं, वो लगातार खुद को अपडेट करने के मंत्र पर कार्यशील हैं।

दूर बैठकर निर्विकार भाव से सब कुछ देखते हुए भी तटस्थ बनें रहना कोई सरल कार्य नहीं होता है, ऐसे लोगों के लिए महाकवि दिनकर ने लिखा – जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनके भी अपराध। सब को एक- एक कर जाते हुए देखना,घुट- घुट कर जीने के समान ही था। खैर जो आया है वो जायेगा ये तो परम् सत्य है सो यही सोच आज तक दूरदृष्टि के साथ जीवन में तारतम्यता स्थापित कर रही है।

जिसे देखो रोनी सूरत बनाए हुए सफलता की उम्मीद की कामना करता है। कुछ नहीं तो फेसबुक पर अपनी पोस्ट को स्पांसर करते हुए अधिक लाइक, कमेंट द्वारा अपनी ही वाल पर वाह – वाह सुनने की चाहत लिए हुए जिए जा रहा है। वैसे भी जीना तो प्रसन्नता पूर्वक ही चाहिए। भले ही इसके लिए कोई भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े। आजकल तो मन हल्का करने हेतु जो जी चाहो लिख दो। जितना उदासी भर नगमा होगा, उतनी जल्दी लोग पूछ – परख करने आपकी वाल पर हाजिर हो जाएंगे। ये लोग केवल दुःख के साथी हैं ऐसा नहीं है,आपकी उपलब्धियों पर भी ये फूलों के गुच्छों का इमोजी भेजते हुए बधाई अवश्य देते हैं। कुछ जो सच्चे मित्र होते हैं वो कम से कम पाँच से सात, इमोजी तो भेजते ही हैं। ये बात अलग है कि शेयर करने की जहमत वहीं लोग उठाते हैं जब पोस्ट उपयोगी हो या उनके लिए पोस्टकर्ता कोई विशेष महत्व का हो।

अब देखिए न दस हजार सब्सक्राइबर बनाते ही हिम्मती जी स्वयं घोषित यू ट्यूबर बन चुके हैं। ये बात अलग है कि सब ने मिलकर उन्हें दस हजारी माला पहना ही दी। जैसी रकम खर्च करोगे वैसा ही तो परिणाम मिलेगा। यहाँ पर कर्म किए जा फल की इच्छा मत कर ये इंसान, ऐसा कोई नियम नहीं चलता है। बस प्रमोट करिए और कराइए, सफलता तो आपकी होकर ही रहेगी। लोग बस वाह- वाह करेंगे, उसमें जो बह गया सो बह गया। जो टिककर लखपति बनने की जोड़ – तोड़ करने लगा, समझो वही सच्चा खिलाड़ी है।

 

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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डॉ भावना शुक्ल

अति सुंदर अभिव्यक्ति