श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं 9साहित्य में सँजो रखा है। हमारा विनम्र अनुरोध है कि प्रत्येक व्यंग्य को हिंदी साहित्य की व्यंग्य विधा की गंभीरता को समझते हुए सकारात्मक दृष्टिकोण से आत्मसात करें। आज प्रस्तुत है होली पर्व पर एक विचारणीय कविता होली के उड़े रंग। )
☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 89 ☆
☆ होली पर्व विशेष – होली के उड़े रंग☆
टेसू के फूल,
मुरझाए हुए हैं,
फागुनी हवा,
शरमाई हुई है,
कोरोना की अंगड़ाई से,
होली बदरंग हो गई है,
स्थगित हुईं यात्राएं,
राख कर गईं दिशाएं,
सांसों में सुलगता अलाव,
नाक में मास्क का तनाव,
कुतर रहा हर क्षण संशय,
सांसों में घर करता भय,
घुटी घुटी दिन दुपहरिया,
लुटा लुटा सा बंजर मौसम,
डरती लुटती जिंदगी,
ढल रही इक्कीसवीं सदी
© जय प्रकाश पाण्डेय
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