श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी की  होली पर्व पर विशेष  विचारोत्तेजक कविता इस बार होली में।  इस विचारणीय रचना के लिए श्री विवेक रंजन जी की लेखनी को नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 102☆

? होली पर्व विशेष – इस बार होली में।  ?

लगाते हो जो मुझे हरा रंग

मुझे लगता है

बेहतर होता

कि, तुमने लगाये होते

कुछ हरे पौधे

और जलाये न होते

बड़े पेड़ होली में।

देखकर तुम्हारे हाथों में रंग लाल

मुझे खून का आभास होता है

और खून की होली तो

कातिल ही खेलते हैं मेरे यार

केसरी रंग भी डाल गया है

कोई मुझ पर

इसे देख सोचता हूँ मैं

कि किस धागे से सिलूँ

अपना तिरंगा

कि कोई उसकी

हरी और केसरी पट्टियाँ उधाड़कर

अलग अलग झँडियाँ बना न सके

उछालकर कीचड़,

कर सकते हो गंदे कपड़े मेरे

पर तब भी मेरी कलम

इंद्रधनुषी रंगों से रचेगी

विश्व आकाश पर सतरंगी सपने

नीले पीले ये सुर्ख से सुर्ख रंग, ये अबीर

सब छूट जाते हैं, झट से

सो रंगना ही है मुझे, तो

उस रंग से रंगो

जो छुटाये से बढ़े

कहाँ छिपा रखी है

नेह की पिचकारी और प्यार का रंग?

डालना ही है तो डालो

कुछ छींटे ही सही

पर प्यार के प्यार से

इस बार होली में।

 

© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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आनंद भैरवे

समयकूल अभिव्यक्ति विवेक जी रंगो को यथार्थ से जोड़कर सुंदर शब्दों की माला दिल को छू लेती हे
बधाई