श्री आशीष कुमार

 

(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में  साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। अब  प्रत्येक शनिवार आप पढ़ सकेंगे  उनके स्थायी स्तम्भ  “आशीष साहित्य”में  उनकी पुस्तक  पूर्ण विनाशक के महत्वपूर्ण अध्याय।  इस कड़ी में आज प्रस्तुत है   “मिलन आत्मा और प्राण का।)

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ आशीष साहित्य – # 7 ☆

 

☆ मिलन आत्मा और प्राण का 

 

असल में जब भगवान राम और भगवान हनुमान आमने सामने आये , तो वे दोनों एक दूसरे को पहचान गए । तो दोनों जानते थे कि कौन कौन है? अथार्त भगवान राम जानते थे कि उनके सामने हनुमान या भगवान शिव के अवतार स्वयं खड़े हैं और भगवान हनुमान को पता था कि वह भगवान राम के सामने खड़े हैं, लेकिन दोनों ऐसा दिखा रहे थे कि वो एक दूसरे को नहीं पहचानते हैं । असल में वे दोनों एक दुसरे की जाँच  कर रहे थे कि मेरे भगवान मुझे पहचानेंगे या नहीं? भगवान राम इंतजार कर रहे थे की कब उनके भगवान शिव, हनुमान के रूप में उनकी पहचान करेंगे । दूसरी ओर, भगवान हनुमान इंतज़ार कर रहे थे की कब उनके भगवान राम, भगवान विष्णु के अवतार उन्हें पहचानेंगे । तो इस समय दोनों के बीच बहुत ही अद्भुत वार्तालाप शुरू हो गया ।

भगवान हनुमान ने कहा, “यह हमारा निवास स्थान है और आप यहाँ  अतिथि हैं, इसलिए कृपया पहले आप मुझे बताइये कि आप कौन हैं?”

उत्तर  में भगवान राम ने मुस्कुराते हुए कहा, “तो आप आतिथेय हैं और हम अतिथि हैं, अच्छी बात है । पर यह अद्भुत बात है कि हम नहीं जानते कि हम किसके घर आये हैं या हम किसके अतिथि हैं”

तब लक्ष्मण ने कहा, “भाईया यह समय की बर्बादी है हम इनसे इनका परिचय पूछ रहे हैं और उत्तर  में वह हमारी पहचान पूछ रहे है । मेरे पास एक विचार है चलो प्रतिस्पर्धा करें, प्रत्येक व्यक्ति एक-दूसरे से पाँच प्रश्न पूछेगा । जो भी अधिक प्रश्नो के ज्यादा सटीक उत्तर देगा उसे दूसरे की पहचान पूछने का प्रथम अधिकार होगा । चलो इन ज्ञानी ब्राह्मण से शुरू करते हैं”

भगवान राम और भगवान हनुमान दोनों सहमत हो गए, एक-दूसरे के साथ वार्तालाप के खेल का आनंद लेने के लिए । तो पहले भगवान हनुमान ने भगवान राम से पाँच प्रश्न पूछे ।

भगवान हनुमान का प्रथम प्रश्न था, “सर्वोच्च ध्यान क्या है?”

भगवान राम ने उत्तर दिया, “सर्वोच्च ध्यान मन का खालीपन है । अगर हम किसी वस्तु पर ध्यान लगाते हैं तो हमारा उस वस्तु के प्रति आकर्षण उत्पन्न होता हैं, और आकर्षण वासना को उत्पन्न करता है जिसने हम इस दुनिया में फिर से बंध जाते है । बेशक शुरुआती चरणों में जब हमारा मस्तिष्क  बाह्य मुखी (बाहरी संसार की ओर  आकर्षित) होता है, तो हम बाहरी वस्तुओ पर ध्यान लगा सकते हैं और भगवन की प्रतिमाओं की ओर ध्यान लगा सकते हैं  पर हमें आगे बढ़ना होगा, अथार्त बाह्य वस्तु पर लगे ध्यान से आगे के चरणों में आंतरिक ध्यान पर या सगुण पर ध्यान की अवस्था से निर्गुण पर ध्यान तक ।

भगवान हनुमान ने कहा, “अति उत्तम ! एकदम सही उत्तर , मेरा दूसरा प्रश्न  है “कि किस धर्म या जात के मनुष्य ज़िंदगी ज्ञान प्राप्ति में आगे बढ़ने के लिए बेहतर है?”

भगवान राम ने उत्तर दिया, “यह इस बात पर निर्भर नहीं करता है की आपका जन्म धनवान परिवार में हुआ है या निर्धन परिवार में, आप गृहस्थ आश्रम में रहते है  या सन्यासी  हैं, और तो और इस बात पर भी नहीं की आप मानव योनि में जन्मे है या पशु के रूप में पैदा हुए है । बल्कि यह तो व्यक्ति की असीम ईश्वर की ओर बढ़ने की अपनी निजी इच्छा पर निर्भर करता है, और वह इच्छा और कुछ भी नहीं है, बल्कि आपके पिछले जन्मो और इस जन्म के कर्मों का कुल परिणाम है । कर्म कुछ और नहीं है, बल्कि किसी मनुष्य के जन्म, जाति, स्थान, पृष्ठभूमि, संस्कृति और पर्यावरण के अनुसार सही धर्म का पालन करना ही कर्म है”

भगवान हनुमान ने कहा, “फिर से बिलकुल सही उत्तर, मैं संतुष्ट हूँ । मेरा तीसरा प्रश्न यह है कि एक व्यक्ति का लिए धर्म क्या है इसे विस्तार से समझाए?”

भगवान राम ने कहा, “जैसा कि मैंने आपको बताया था कि धर्म हमारे अस्तित्व पर निर्भर करता है की हमारा जन्म ब्रह्मांड में किस स्थान और किस समय में हुआ है । उदाहरण के लिए मान लीजिए कि दो हिंदू ब्राह्मण हैं जो वेदों में वर्णित कर्मकांड (वेदों के अनुसार हिंदू धार्मिक अनुष्ठान) के पूर्णतय अनुयायी हैं । अब मान लीजिए कि ऐसी स्थिति है कि ये दो ब्राह्मण एक ऐसे स्थान पर फंस गए हैं जहाँ  माँस को छोड़कर खाने के लिए कुछ नहीं बचा है । अब, यदि इनमें से एक भूख से मरने वाला है, और यदि वह केवल माँस खता है , तो ही जीवित रह सकता है लेकिन वह नहीं खाएगा,और दूसरा ब्राह्मण उसे खाने की अनुमति नहीं देगा । यहाँ  तक ​​कि अगर उनकी मृत्यु हो जायगी तब भी वह दोनों संतुष्ट रहेंगे कि वे जीवन की कीमत पर भी अपने धर्म का पालन करते रहे । अब एक और लगभग समान स्थिति ले लो लेकिन इस बार दो राक्षस हैं- एक भूख से मरने वाला है और केवल माँस ही खाने का विकल्प है । तो दूसरा राक्षस उसे माँस खाने को देगा और संतुष्ट होगा कि उसने अपने साथी को खाने की लिए माँस दिया और उसका जीवन बचा लिया । वह यही सोचेगा की उसने अपने राक्षस धर्म का पालन करके अपने साथी के प्राण बचा लिए । तो आपने देखा है कि एक स्थिति में जब कोई व्यक्ति दूसरे को माँस खाने की अनुमति दे रहा है तो वह अपने धर्म का पालन कर रहा है और दूसरी  स्थिति में एक व्यक्ति दूसरे को माँस खाने नहीं देने की स्थिति में अपने धर्म का पालन कर रहा है । तो धर्म इस तथ्य पर निर्भर करता है कि किस जाति, देश, पृष्ठभूमि या पर्यावरण में हम पैदा हुए थे और जुड़े हुए हैं । उपर्युक्त उदाहरण में एक ब्राह्मण मर जाता है, लेकिन माँस नहीं खाता, जिसका अर्थ है कि उसने अपने धर्म का पालन करने के लिए अपना जीवन त्याग दिया है । इसलिए वास्तविकता में भी बलिदान ही ब्राह्मण का मुख्य धर्म है”

भगवान हनुमान इस उत्तर  से खुश थे और कहा, “मेरे भगवान आप वास्तव में एक ज्ञानी व्यक्ति हैं। मेरा चौथा प्रश्न यह है कि यदि आप युद्ध में सब कुछ खो देते हैं और कुछ भी नहीं बचता है तो भी वो आखिरी हथियार क्या है जो आपको जीत दिला सकता है ?”

भगवान राम ने उत्तर  दिया, “वह ‘आशा या उम्मीद है’ क्योंकि यदि आपके दिल में आशा है तो आप हारे हुए  युद्ध का परिणाम भी अपने पक्ष में बदल सकते हैं ।

भगवान हनुमान ने कहा, “मेरा आखिरी प्रसन्न यह है कि एक शब्द में प्रेम की परिभाषा क्या है?”

भगवान राम ने कहा, “वह ‘बलिदान’ है । बलिदान के बिना दिल में कोई प्रेम नहीं हो सकता है । सच्चा प्यार अपनी इच्छाओ का त्याग है ताकि वह अपने प्रेमी के चेहरे पर एक पल की मुस्कान ला सके ”

भगवान हनुमान, भगवान राम के चरणों की ओर झुकते हुए कहते है, “भगवान! कृपया मुझे बताइये कि आप मुझे पहचान क्यों नहीं रहे है?”

भगवान राम ने मुस्कुराते हुए भगवान हनुमान के कंधो को पकड़ा और कहा, “मित्र अब पाँच प्रश्न पूछने की मेरी बारी है । क्या आप तैयार है?”

भगवान हनुमान ने कहा, “मेरे भगवान आप पहले से ही विजेता हैं, लेकिन ठीक है, मैं आपके प्रश्नो का उत्तर देने का प्रयत्न करूँगा । कृपया पूछें”

भगवान राम ने कहा, “मेरा पहला प्रश्न यह है कि सबसे बड़ा त्याग क्या है?”

भगवान हनुमान ने कहा, “अहंकार का त्याग ही सबसे बड़ा त्याग है और करने में सबसे कठिन  है”

भगवान राम ने कहा, “ठीक है, मेरा दूसरा प्रश्न  है सफलता क्या है?”

भगवान हनुमान ने उत्तर दिया, “जिस दिन आप संतुष्ट हैं, वह आपकी सफलता को परिभाषित करता है । यदि आप हर रात्रि संतुष्टि के साथ सोते हैं तो आप सफल हैं, लेकिन यदि किसी रात्रि आपके कारण अधिक से अधिक लोग संतुष्ट सोते हैं, तो आप जीवन में और भी ज्यादा सफल हैं”

भगवान राम ने उत्तर दिया, “हाँ बहुत अच्छा उत्तर , मेरा तीसरा प्रश्न, सच्चाई क्या है?

भगवान हनुमान ने कहा, “जो कुछ भी आपको किसी भी परिस्थिति में अपना धर्म करने के करीब ले जाता है वह ही सच है”

भगवान राम ने कहा, “ठीक है, मैं आपके उत्तर से संतुष्ट हूँ, अब मेरा चौथा प्रन्न यह है कि वास्तविक धन क्या है?”

भगवान हनुमान ने उत्तर दिया, “परिवार और मित्र ही मनुष्य की असली संपत्ति हैं”

भगवान राम ने कहा, “ठीक है, फिर से सही उत्तर, तो मेरा आखिरी प्रश्न है जिसका उत्तर आप सही नहीं दे पाओगे, और वह प्रश्न है कौन बड़े  भगवान है, भगवान विष्णु या भगवान शिव?”

भगवान राम ने वार्तालाप समाप्त करने और जल्द सुग्रीव से मिलने के लिए इस प्रश्न को पूछा, क्योंकि उन्हें पता था कि हनुमान भगवान शिव के अवतार है, इसलिए उनका उत्तर भगवान विष्णु होगा और दूसरी ओर भगवान राम का मानना ​​है कि शिव महानतम हैं । असल में यह भगवान या किसी अन्य महान व्यक्ति का एक महान गुण है कि वह कभी नहीं कहता कि वह खुद सबसे अच्छा या महान है । भगवान राम जो भगवान विष्णु के अवतार हैं, विष्णु को महानतम नहीं बता सकते, और इसी प्रकार भगवान हनुमान जो भगवान शिव के अवतार है, वो शिव को कभी भी महानतम नहीं बतायंगे ।

भगवान हनुमान जानते थे कि भगवान राम उनके साथ चाल चल रहे है । वह आँखों में आँसूो के साथ मुस्कुराते हुए कहते है, “मुझे नहीं पता कि कौन सबसे महान है, लेकिन मेरे लिए सबसे बड़े भगवान मेरा श्री राम है”

भगवान हनुमान भगवान राम के चरणों में गिर जाते हैं । लक्ष्मण भी भगवान और उनके भक्त के इस महान मिलन को देख रहे थे ।

इस प्रतिस्पर्धा में भगवान राम जीत गए थे पर वो भगवन हनुमान की भक्ति से हार गए थे । भगवान राम भगवान हनुमान की बाहों को पकड़ते हैं और उन्हें गले लगा लेते हैं ।

 

 

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