श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं विशेष भावप्रवण कविता “संतोष के दोहे”। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 82 ☆
☆ संतोष के दोहे ☆
पूजा निश दिन कीजिये, हैं ईश्वर अवतार
मात-पिता से जो करें, गर वो सच्चा प्यार
सेवा से प्रियता मिले, मिलता प्रेम अपार
पर हित से बढ़ कर नहीं, धरम न दूजा यार
कोरोना में ही लगा, यहाँ सभी का ध्यान
जाने की अब प्रतीक्षा, करता सकल जहान
मोबाइल के दौर में, कम ही लिखते पत्र
कमी आ गई डाक में, बदल गए नक्षत्र
जहाँ प्यार के नाम पर, नव पीढ़ी स्वछंद
संस्कार दूषित हुए, तँह क्यूँ है मुँह बन्द
© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
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