श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है।आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता ‘नकली इंजेक्शन’)
☆ संस्मरण # 97 ☆ स्वच्छता मिशन ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय☆
ये बात ग्यारह साल पहले की है, जब स्वच्छता मिशन चालू भी नहीं हुआ था…….. ।
समाज के कमजोर एवं गरीब वर्ग के सामाजिक और आर्थिक उत्थान में स्टेट बैंक की अहम् भूमिका रही है। ग्यारह साल पहले हम देश की पहली माइक्रो फाइनेंस ब्रांच लोकल हेड आफिस, भोपाल में प्रबंधक के रुप में पदस्थ थे। ग्वालियर क्षेत्र में माइक्रो फाइनेंस की संभावनाओं और फाइनेंस से हुए फायदों की पड़ताल हेतु ग्वालियर श्रेत्र जाना होता था। माइक्रो फाइनेंस अवधारणा ने बैंक विहीन आबादी को बैंकिंग सुविधाओं के दायरे में लाकर जनसाधारण को परंपरागत साहूकारों के चुंगल से मुक्त दिलाने में प्राथमिकता दिखाई थी, एवं सामाजिक कुरीतियों को आपस में बातचीत करके दूर करने के प्रयास किए थे।
एक उदाहरण देखिए……..
स्व सहायता समूह की एक महिला के हौसले ने पूरे गाँव की तस्वीर बदल डाली , उस महिला से प्रेरित हो कर अन्य महिलाऐं भी आगे आई …. महिलाओं को देख कर पुरुषों ने भी अपनी मानसिकता को त्याग दिया और जुट गए अपने गाँव की तस्वीर बदलने के लिए….. ।
………ग्वालियर जिले का गाँव सिकरोड़ी की अस्सी प्रतिशत जनसँख्या अनुसूचित जाति की है लोगों की माली हालत थी , लोग शौच के लिए खुले में जाया करते थे, स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया ने माइक्रो फाइनेंस योजना के अंतर्गत वामा गैर सरकारी संगठन ग्वालियर को लोन दिया , वामा संस्था ने इस गाँव को पूर्ण शौचालाययुक्त बनाने का सपना संजोया …. अपने सपने को पूरा करने के लिए उसने स्टेट बैंक की मदद ली , गाँव के लोगों की एक बैठक में इस बारे में बातचीत की गई , बैठक के लिए शाम आठ बजे पूरे गाँव को बुलाया गया , हालाँकि उस वक़्त तक गाँव के पुरुष नशा में धुत हो जाते थे और इस हालत में उनको समझाना आसान नहीं था , लेकिन वामा और स्टेट बैंक ने हार नहीं मानी, और फिर बैठक की ….बैठक में महिलाओं और पुरुषों को शौचालय के महत्त्व को बताया , पुरुषों ने तो रूचि नहीं दिखी लेकिन एक महिला के हौसले ने इस बैठक को सार्थक सिद्ध कर दिया । विद्या देवी जाटव ने कहा कि वह अपने घर में कर्जा लेकर शौचालय बनवायेगी , वह धुन की पक्की थी उसने समूह की सब महिलाओं को प्रेरित किया इस प्रकार एक के बाद एक समूह की सभी महिलाएं अपने निश्चय के अनुसार शौचालय बनाने में जुट गईं , पुरुष अभी भी निष्क्रिय थे …. जब उन्होंने देखा कि महिलाओं में धुन सवार हो गई है तो गाँव के सभी पुरुषों का मन बदला और तीसरे दिन ही वो भी सब इस सद्कार्य में लग गए और देखते ही देखते पूरा गाँव शौचालय बनाने के लिए आतुर हो गया , प्रतिस्पर्धा की ऐसी आंधी चली कि कुछ दिनों में पूरे गाँव के हर घर में शौचालय बन गए और साल भर में कर्ज भी पट गए …. तो भले राजनीतिक लोग स्वच्छता अभियान, और शौचालय अभियान का श्रेय ले रहे हों,पर इन सबकी शुरुआत ग्यारह साल पहले स्टेट बैंक और माइक्रो फाइनेंस ब्रांच भोपाल ने चालू कर दी थी।
……. जुनून पैदा करो और जलवा दिखाओ।
© जय प्रकाश पाण्डेय
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