(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी द्वारा लिखित आलेख बिना कलम कागज….। इस विचारणीय रचना के लिए श्री विवेक रंजन जी की लेखनी को नमन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 109 ☆
बिना कलम कागज….
वसुधैव कुटुम्बकम् की वैचारिक उद्घोषणा वैदिक भारतीय संस्कृति की ही देन है . वैज्ञानिक अनुसंधानो , विशेष रूप से संचार क्रांति तथा आवागमन के संसाधनो के विकास ने तथा विभिन्न देशो की अर्थव्यवस्था की परस्पर प्रत्यक्ष व परोक्ष निर्भरता ने इस सूत्र वाक्य को आज मूर्त स्वरूप दे दिया है , कोरोना त्रासदी ने दवा , वैक्सीन जैसे मुद्दे वैश्विक एकता के उदाहरण हैं . हम भूमण्डलीकरण के युग में जी रहे हैं . सारा विश्व कम्प्यूटर चिप और बिट में सिमटकर एक गांव बन गया है .
लेखन , प्रकाशन , पठन पाठन में नई प्रौद्योगिकी की दस्तक से आमूल परिवर्तन परिलक्षित हो रहे हैं . नई पीढ़ी अब बिना कलम कागज के ही कम्प्यूटर पर ही सीधे लिख रही है ,प्रकाशित हो रही है , और पढ़ी जा रही है . ब्लाग तथा सोशल मीडीया वैश्विक पहुंच के साथ वैचारिक अभिव्यक्ति के सहज , सस्ते , सर्वसुलभ , त्वरित साधन बन चुके हैं .सामाजिक बदलाव में सर्वाधिक महत्व विचारों का ही होता है .लोकतंत्र में विधायिका , कार्यपालिका , न्यायपालिका के तीन संवैधानिक स्तंभो के बाद पत्रकारिता को चौथे स्तंभ के रूप में मान्यता दी गई क्योकि पत्रकारिता वैचारिक अभिव्यक्ति का माध्यम होता है , आम आदमी की नई प्रौद्योगिकी तक पहुंच और इसकी त्वरित स्वसंपादित प्रसारण क्षमता के चलते सोशल मीडिया व ब्लाग जगत को लोकतंत्र के पांचवे स्तंभ के रूप में देखा जा रहा है . वैश्विक स्तर पर पिछले कुछ समय में कई सफल जन आंदोलन इसी सोशल मीडिया के माध्यम से खड़े हुये हैं .
हमारे देश में भी बाबा रामदेव , अन्ना हजारे के द्वारा बिना बंद , तोड़फोड़ या आगजनी के चलाया गया जन आंदोलन , और उसे मिले जन समर्थन के कारण सरकार को विवश होकर उसके सम्मुख किसी हद तक झुकना पड़ा था . इन आंदोलनो में विशेष रुप से नई पीढ़ी ने इंटरनेट , मोबाइल एस एम एस और मिस्डकाल के द्वारा अपना समर्थन व्यक्त किया .
जब हम भारतीय परिदृश्य में इस प्रौद्योगिकी परिवर्तन को देखते हैं तो हिंदी पर इसके प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखते हैं . 21 अप्रैल, 2003 की तारीख वह स्वर्णिम तिथि है जब रात्रि 22:21 बजे हिन्दी के प्रथम ब्लॉगर, मोहाली, पंजाब निवासी आलोक ने अपने ब्लॉग ‘9 2 11’ पर अपना पहला ब्लॉग-आलेख हिन्दी में पोस्ट किया था . तब से होते निरंतर प्रौद्योगिकी विकास के साथ हिन्दी के महत्व को स्वीकार करते हुये ही बी बी सी , स्क्रेचमाईसोल , रेडियो जर्मनी ,टी वी चैनल्स , तथा देश के विभिन्न अखबारो तथा न्यूज चैनल्स ने भी अपनी वेबसाइट्स पर पाठको के ब्लाग के पन्ने बना रखे हैं . ब्लागर्स पार्क दुनिया की पहली ब्लागजीन के रूप में नियमित रूप से मासिक प्रकाशित हो चुकी है . यह पत्रिका ब्लाग पर प्रकाशित सामग्री को पत्रिका के रूप में संयोजित करने का अनोखा कार्य कर रही थी .मुझे गर्व है कि मैं इसके मानसेवी संपादन मण्डल का सदस्य रहा हूं . अपने नियमित स्तंभो में प्रायः समाचार पत्र ब्लाग से सामग्री उधृत करते दिखते हैं . हिन्दी ब्लाग के द्वारा जो लेखन हो रहा है उसके माध्यम से साहित्य , कला समीक्षा , फोटो , डायरी लेखन आदि आदि विधाओ में विशेष रूप से युवा रचनाकार अपनी नियमित अभिव्यक्ति कर रहे हैं . ई अभिव्यक्ति वेब पोर्टल हेमन्त बावनकर जी का अनूठा प्रयोग है , जिसकी हर सुबह पाठक प्रतीक्षा करते हैं ।
वेब दुनिया , जागरण जंकशन , नवभारत टाइम्स जैसे अनेक हिन्दी पोर्टल ब्लागर्स को बना बनाया मंच व विशाल पाठक परिवार सुगमता से उपलब्ध करवा रहे हैं .और उनके लेखन के माध्यम से अपने पोर्टल पर विज्ञापनो के माध्यम से धनार्जन भी करने में सफल हैं . हिन्दी और कम्प्यूटर मीडिया के महत्व को स्वीकार करते हुये ही अपने वोटरो को लुभाने के लिये राजनैतिक दल भी इसे प्रयोग करने को विवश हैं . हिन्दी न जानने वाले राजनेताओ को हमने रोमन हिन्दी में अपने भाषण लिखकर पढ़ते हुये देखा ही है .
यह सही है कि ब्लाग लेखन और व्यापकता चाहता है , पर जैसे जैसे नई कम्प्यूटर साक्षर पीढ़ी बड़ी होगी , इंटरनेट और सस्ता होगा तथा आम लोगो तक इसकी पहुंच बढ़ेगी यह वर्चुएल लेखन और भी ज्यादा सशक्त होता जायेगा , एवं भविष्य में लेखन क्रांति का सूत्रधार बनेगा . युवाओ में बढ़ी कम्प्यूटर साक्षरता से उनके द्वारा देखे जा रहे ब्लाग के विषय युवा केंद्रित अधिक हैं .विज्ञापन , क्रय विक्रय , शैक्षिक विषयो के ब्लाग के साथ साथ स्वाभाविक रूप से जो मुक्ताकाश कम्प्यूटर और एंड्रायड मोबाईल , सोशल नेट्वर्किंग, चैटिंग, ट्विटिंग, ई-पेपर, ई-बुक, ई-लाइब्रेरी, स्मार्ट क्लास, ने सुलभ करवाया है , बाजारवाद ने उसके नगदीकरण के लिये इंटरनेट के स्वसंपादित स्वरूप का भरपूर दुरुपयोग किया है . हिट्स बटोरने हेतु उसमें सैक्स की वर्जना , सीमा मुक्त हो चली है . वैलेंटाइन डे के पक्ष विपक्ष में लिखे गये ब्लाग अखबारो की चर्चा में रहे .प्रिंट मीडिया में चर्चित ब्लाग के विजिटर तेजी से बढ़ते हैं , और अखबार के पन्नो में ब्लाग तभी चर्चा में आता है जब उसमें कुछ विवादास्पद , कुछ चटपटी , बातें होती हैं , इस कारण अनेक लेखक गंभीर चिंतन से परे दिशाहीन होते भी दिखते हैं . हिंदी भाषा का कम्प्यूटर लेखन साहित्य की समृद्धि में बड़ी भूमिका निभाने की स्थिति में हैं ,क्योकि ज्यादातर हिंदी ब्लाग कवियों , लेखको , विचारको के सामूहिक या व्यक्तिगत ब्लाग हैं जो धारावाहिक किताब की तरह नित नयी वैचारिक सामग्री पाठको तक पहुंचा रहे हैं . पाडकास्टिंग तकनीक के जरिये आवाज एवं वीडियो के ब्लाग , मोबाइल के जरिये ब्लाग पर चित्र व वीडियो क्लिप अपलोड करने की नवीनतम तकनीको के प्रयोग तथा मोबाइल पर ही इंटरनेट के माध्यम से ब्लाग तक पहुंच पाने की क्षमता उपलब्ध हो जाने से कम्प्यूटर लेखन और भी लोकप्रिय हो रहा है . अनेक लेखक जो पहले ब्लाग पर लिखते थे प्रौद्योगिकी के परिवर्तनो के साथ सुगमता की दृष्टि से फेसबुक व अन्य सोशल साइट्स पर शिफ्ट हो रहे हैं .
यात्रा रिजर्वेशन , नेट-बैंकिंग, सेटेलाईट टीवी, हाई टेक हिन्दी फ़िल्मों, रोजमर्रा की जीवन शैली में क्म्प्यूटर के बढ़ते समावेश से देश-वासियों और देश-दुनिया के साथ हिन्दी-भाषियों के भी काम-काज, घर-बार और दैनिक जीवन के प्रयोग-अनुप्रयोग में , शासकीय गैरशासकीय वेबसाइट्स की सूचनाओ के माध्यम से भी हिन्दी समृद्ध होती जा रही है . दुनिया भर के हिन्दी लेखक नेट संवाद के जरिये पास आ रहे हैं . इंटरनेट पर हिन्दी लेखन की सबसे बड़ी कमी उसका वर्चुएल होना और उसका कोई स्थाई संग्रहण न होना है . यद्यपि आज भी कम्प्यूटर पर हिन्दी इतनी समृद्ध हो चुकी है कि जब भी हमें कुछ संदर्भ आवश्यक होता है , हम पुस्तकालय जाने से पहले संदर्भ सामग्री की तलाश इंटरनेट पर ही करते हैं , यह उपलब्धि बहुत महत्वपूर्ण है तथा भविष्य के लिये स्पष्ट संकेत है . सर्च इंजन की कुशलता बढ़ने के साथ ही हमारी संदर्भ के लिये यह निर्भरता और बढ़ती जायेगी . कम्प्यूटर लेखन के साफ्ट कापी से हार्ड कापी में नव परिवर्तनों के इस दौर में प्रिंटंग प्रौद्योगिकी की बढ़ती सुविधाओ के चलते पुस्तक प्रकाशन अब पहले से कहीं सरल हो चला है , इससे भी हिन्दी के विकास को प्रोत्साहन मिला है .
संसद से सड़क तक….बाज़ार से बस्ती तक…शिक्षित से सुशिक्षित तक….चूल्हे-चौके से चौक तक ..मिल से मॉल तक …कैटल क्लास से कॉर्पोरेट क्लास तक .. हिन्दी भाषा किसी प्रचार की मोहताज़ नही है .हिन्दी का अपना प्रवाह , अपना समृद्ध शब्दकोष ,अपना व्याकरण है .हिन्दी जड़ता से परे विकासशील और उदारवादी भाषा है . महात्मा गांधी विश्व चिंतक थे , उन्होने हिन्दी को देश को जोड़ने के लिये आवश्यक बताते हुये इसे राष्ट्रभाषा बताया था . अपने परिवेश की बोलियों , अन्य भाषाओ तथा नई प्रौद्योगिकी के संसाधनो को समाहित करने की क्षमता ही हिन्दी को सहज और सर्वस्वीकार्य बनाती है. भूमण्डलीकरण एवं नई प्रौद्योगिकी से हिन्दी और भी समृद्ध होगी .
© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
मो ७०००३७५७९८
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈