श्री संतोष नेमा “संतोष”

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं विशेष भावप्रवण कविता  “संतोष के दोहे। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 84 ☆

☆ संतोष के दोहे ☆

धर्म सनातन कह रहा, सारा जग परिवार

भेद-भाव मन से मिटे, सब ईश्वर अवतार

 

सुख-दुख में सब साथ हों, रहे प्रेम व्यबहार

बच्चे भी सीखें सदा, नव आचार-बिचार

 

रिश्तों की मीठी महक, सबको दे सम्मान

जोड़े सब परिवार को, बढ़ती घर की शान

 

कभी न टूटे आपके, रिश्तों की यह डोर

माला सा परिवार बँध, खींचे सबकी ओर

 

हो वसुदेव कुटुम्बकम, कहते अपने ग्रंथ

प्रेम भाव से सब रहें, सबके अपने पंथ

 

पर कलियुग में आजकल, बिखरे सब परिवार

धन-दौलत की लालसा, स्वारथ का व्यबहार

 

जीवन में गर चाहिए, सुख-शांति संतोष

साथ रहें माँ-बाप के, यह जीवन परितोष

 

© संतोष  कुमार नेमा “संतोष”

सर्वाधिकार सुरक्षित

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 9300101799
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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