डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं “भावना के दोहे”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 95 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के दोहे ☆
शेर देखते हम सभी,
हो जाते थे ढेर।
कानन में शोभा नहीं,
दिखे न कोई शेर।।
रघुनंदन की हम सभी,
करते रहे पुकार।
अंतरतम में जा बसे,
करते हैं उद्धार।।
सूख गए पनघट सभी,
नहीं घड़ों का शोर।
पनिहारिन आती नहीं,
हो जाती है भोर।।
नैनों की शोभा बहुत,
काजल सोहे नैन।
एक बार जो देख ले,
मिले नहीं फिर चैन।।
रक्षा बंधन प्यार का,
प्यारा सा त्योहार।
खुशियां भाई बहिन की,
मना रहा संसार।।
© डॉ.भावना शुक्ल
सहसंपादक…प्राची
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