डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’

(डॉ विजय तिवारी ‘ किसलय’ जी संस्कारधानी जबलपुर में साहित्य की बहुआयामी विधाओं में सृजनरत हैं । आपकी छंदबद्ध कवितायें, गजलें, नवगीत, छंदमुक्त कवितायें, क्षणिकाएँ, दोहे, कहानियाँ, लघुकथाएँ, समीक्षायें, आलेख, संस्कृति, कला, पर्यटन, इतिहास विषयक सृजन सामग्री यत्र-तत्र प्रकाशित/प्रसारित होती रहती है। आप साहित्य की लगभग सभी विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी सर्वप्रिय विधा काव्य लेखन है। आप कई विशिष्ट पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं।  आप सर्वोत्कृट साहित्यकार ही नहीं अपितु निःस्वार्थ समाजसेवी भी हैं।आप प्रति शुक्रवार साहित्यिक स्तम्भ – किसलय की कलम से आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका  एक अत्यंत ज्ञानवर्धक, ऐतिहासिक एवं आध्यात्मिक आलेख  “धर्म का श्रेष्ठ गुण मानवता है।”.)

☆ किसलय की कलम से # 48 ☆

☆ धर्म का श्रेष्ठ गुण मानवता है। ☆

एक समय था जब अपने वर्चस्व हेतु युद्ध हुआ करते थे। छोटे-छोटे राज्यों के शासक अपनी महत्त्वाकांक्षा के चलते दूसरे राज्यों पर आक्रमण कर अपनी शान एवं अपने बल-वैभव की श्रेष्ठता दिखाया करते थे। उन्हें अपने अधीन कर चक्रवर्ती सम्राट बना करते थे। अश्वमेध यज्ञ जैसे अनुष्ठान भी कहीं-कहीं कहीं न कहीं इसी वर्चस्व के ही प्रतीक हैं। कुछ राजा तानाशाह एवं हिंसा के समर्थक होते थे। वे लूटपाट, नरसंहार, साम्राज्य विस्तार आदि लिए अपनी फौजें लेकर दूर तक निकल जाते थे। अरब के इलाकों में कबीलों के मुखिया भी अलग अलग तरह से अपने वर्चस्व और अपने दबदबे के लिए किसी भी हद तक गिर जाया करते थे। भारत में आने वाले मुगलों एवं अंग्रेजों ने भी तो यही किया था। यदि हम दो-ढाई हजार वर्ष पीछे जाएँ तो महत्त्वाकांक्षा एवं वर्चस्व के अतिरिक्त कुछ नहीं मिलेगा। यदा-कदा ही मानवता के दस्तावेज मिलेंगे। यही डेढ़ से दो हजार वर्ष का वह कालखंड है जब धर्म-सम्प्रदायों ने अपना प्रचार-प्रसार व विस्तार किया। बीसवीं सदी के आते-आते प्रायः सभी धर्मों में परिवर्तन होते गए। कुछ धर्म अहिंसा, करुणा, भक्ति एवं मनुजता के पथ पर अग्रसर होते गए। कुछ धर्म कट्टरपंथी होते गए। ये कट्टरपंथी धर्म ऐसी राह पर चल पड़े जिसमें अन्य धर्मावलंबियों के लिए कोई स्थान नहीं रखा गया। कूटनीतियों एवं बर्बरता से अपने धर्म में धर्मांतरण कराना इनके धर्मगुरुओं ने सबसे नेक कार्य बताया। धर्मांतरण न करने वालों पर क्रूरता व हत्या जैसी वारदातें भी इन कट्टरपंथियों द्वारा की जाने लगीं।

मेरी दृष्टि में शिक्षा, संस्कार, मानवाधिकार व वर्तमान के बदलते परिवेश में  सभी धर्म द्वितीय वरीयता पर आ गए हैं। अब कोई भी धंधे जातिगत नहीं रह गये हैं। छुआछूत जैसी कुरीतियाँ किसी कोने में अंतिम साँसें गिन रही हैं। पढ़े-लिखे नवयुवक, नवयुवतियाँ अंतरजातीय विवाह करना बुरा नहीं मानते। हमारा, आपका या सबके रक्त का रंग लाल ही है। हम सभी लोग देश, परिस्थितियों एवं परंपरानुसार भोज्य पदार्थों का उपभोग करते हैं। हमें परस्पर किसी के खानपान से कोई वैमनस्यता नहीं है। रोजी-रोटी, उद्योग-धंधों आर्थिक उपलब्धियों तथा जीवन-यापन के संसाधनों से हमें कोई दुराव नहीं तब धार्मिक कट्टरपंथ से अमानवीय कृत्य करना कहाँ तक उचित है? जब आप अपने ढंग से जीवनयापन और धनोपार्जन करने हेतु स्वतंत्र हैं तब समाज, संप्रदाय अथवा धार्मिक जंग कहाँ तक वाजिब है? इस तकनीकि-समृद्ध विकसित व भूमंडलीकरण की दिशा में बढ़ रहे  समाज में असामयिक, संकीर्ण तथा कट्टरपंथी धर्मों के लिए कोई स्थान नहीं है।

यदि आज विश्व के प्रायः सभी धर्मों में कोई एक समानता है और कोई एक सोच ने जन्म लिया है तो वह है मानवता। यही मानवता हमें और हमारे विश्व को सद्भावना के शिखर पर बैठा सकती है। मानवता के पथ से विमुख प्राचीन धार्मिक उपदेशों, पाप और पुण्य की व्याख्याओं अथवा अनुपयोगी दिशा-निर्देशों का पालन करना कदापि उचित नहीं हो सकता? समय के साथ-साथ परिस्थितियाँ भी बदलती हैं, मायने बदलते हैं और आवश्यकताएँ भी बदलती जाती हैं।              

धर्म का श्रेष्ठ गुण मानवता है।इसीलिए वर्तमान समाज में मानवीय मूल्यों का सम्मान किया जाना चाहिए। दया, सद्भावना एवं परोपकारिता जैसे सद्गुणों को बढ़ावा देना चाहिए। हम मानव के रूप में इस पृथ्वी पर जन्मे हैं। सदाचार, सन्मार्ग व मानवता पर आधारित जीवन जीने की जो प्रेरणा दे, उसे अपनाकर हमें अपने जन्म को कृतार्थ करना चाहिए।

© डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’

पता : ‘विसुलोक‘ 2429, मधुवन कालोनी, उखरी रोड, विवेकानंद वार्ड, जबलपुर – 482002 मध्यप्रदेश, भारत
संपर्क : 9425325353
ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हेमन्त बावनकर

सच है बंधुवर मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं

विजय तिवारी " किसलय "

आपका अंतस से आभार अग्रज हेमंत बावनकर जी।
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