(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका पारिवारिक जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं।
आज प्रस्तुत है सुश्री समीक्षा तैलंग जी की पुस्तक “कबूतर का कैटवॉक” – की समीक्षा।
चर्चित कृति .. कबूतर का कैटवॉक
संस्मरण लेखिका- सुश्री समीक्षा तैलंग
प्रकाशक- भावना प्रकाशन, दिल्ली
मूल्य – २०० रु
पृष्ठ – १२८
पर्यटन साहित्य का जनक होता है क्योंकि जब लेखक भौतिक यात्रा करता होता है तो प्रकृति, परिवेश से प्रभावित उसका मन भी वैचारिक यात्रा पर निकल पड़ता है. लेखक इन अनुभवों को जाने अनजाने अंतस में संजोंता रहता है. कविता, कहानी, रचनाओ में लेखक मन की यह पूंजी जब तब छलकती ही रहती है. किंतु पर्यटन साहित्य व संस्मरण वे विधायें हैं जो स्पष्टतः रचनाकार के मन के दर्शन और उसकी इन अनुभूतियों की आध्यात्मिकता को पाठको के सम्मुख वैचारिक स्वरूप में शब्द चित्रो के जरिये अभिव्यक्त करती हैं. समीक्षा तैलंग हिन्दी पत्रकारिता से प्रारंभ कर, व्यंग्य संग्रह “जीभ अनशन पर है” के माध्यम से हिन्दी पाठको तक सक्षम रूप से पहुंच चुकीं हैं, उनका यह प्रथम व्यंग्य संग्रह ही लेखिका संघ के भव्य मंच पर समादृत हो चुका है. यह लिखने का आशय मात्र इतना है कि समीक्षा जी को मेरे जैसे पाठक गहन रुचि तथा गंभीरता से पढ़ते हैं.
चर्चित कृति कबूतर का कैटवॉक, उनके २५ से अधिक रोचक संस्मरणो का पठनीय संग्रह है. अनूप शुक्ल जिन्हें उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान ने संस्मरण लेखन हेतु पुरस्कृत किया है, ने इस संग्ह की भूमिका ” गैर इरादतन घुमक्कड़ी के किस्सों की दास्तान ” लिखी है. समीक्षा जी दुबई में लंबे समय तक रहीं हैं, परदेश में रहते हुये उनकी छोटी बड़ी यात्राओ से उपजे वैचारिक सचित्र आलेख किताब में हैं. संस्मरण “कबूतर का कैटवाक” किताब का शीर्षक संस्मरण है, अतः सबसे पहले वही पढ़ा वे लिखती हैं ” मुझे तो पत्थरों में भी सौंदर्य दिखता है ” उनकी यही दृष्टि और लिखने की यह दार्शनिक शैली जिसमें वे लिखती हैं
” हम सब बड़ी सुंदरता, बड़ी उपलब्धि, बड़ी खुशी, बड़ी उम्मीदें लेकर भागते हैं. बड़े का वजन हमें छोटी छोटी बातों को फील करने से रोकता है. ” पुस्तक को पठनीय बनाती है. शुक्रवारी यात्रा पर कई संस्मरण हैं, दरअसल व्यस्त सप्ताह में छुट्टी के दिन ही परिवार के संग लुत्फ के होते हैं और उल्लेखनीय है कि अबूधाबी में साप्ताहिक अवकाश शुक्रवार का होता है. इन दिनों लेखिका पुणे में रहती हैं और कुछ आलेख पुणे के भी हैं, जैसे लोनावाला के डैम पर केंद्रित उनकी रचना जो कोरोना काल में लिखी गई है. पर्यटन स्थलो की साफ सफाई व सार्वजनिक स्वच्छता के प्रति हम सब की जबाबदारी पर वे लिखती हैं
” वहाँ चट्टानो के बीच लोगों ने गजब की गंदगी छोड़ रखी है, टूरिस्ट अपना कचरा वहीं छोड़ चलते बने थे, बच्चों के डायपर, प्लास्टिक की बोतलें, जगह जगह गिरे हुये मास्क, खाने के सामान के खाली पैकेट्स सब वहीं फेंक दिये थे….. जिम्मेदारी किसी को नहीं चाहिये, फिर कहो कि विदेश कितना साफ सु्थरा है. ” यह उनके अंतरमन की राष्ट्रीय कर्तव्यो के प्रति जन लापारवाही की पीड़ा है. यायावरी के उनके रोचक किस्से ’कबूतर का कैटवॉक’ में प्रवाहमयी भाषा में लिखे गये हैं. पुस्तक जरूर पढ़िये, किताब अमेजन पर सुलभ है.
समीक्षक .. विवेक रंजन श्रीवास्तव
ए १, शिला कुंज, नयागांव, जबलपुर ४८२००८
मो ७०००३७५७९८
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
समीक्षा जी की पुस्तक कबूतर का केट वाक । जिसका शीर्षक ही इतना रोचक है पठनीय सामग्री अत्यंत रोचक होगी यह आपकी समीक्षा पढ़कर और उत्सुकता बढ़ाती है । पर्यटन पर लिखने में अधिकतर संभावना रहती है कि वह एक रिपोर्ताज की तरह हो सकती है लेकिन समीक्षा जी ने जिस हल्के फुल्के रोचक अंदाज में लिखा है उसके लिए हार्दिक बधाई । उतनी ही सारगर्भित समीक्षा के लिए विवेक जी आपका साधुवाद । शुभकामनाएं ।