डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)
लेखनी सुमित्र की #55 – दोहे
औषधि भोजन चाय का, सब रखते हैं ध्यान ।
किंतु तुम्हारे हाथ के, अब दुर्लभ हैं पान।।
करता हूं जलपान फिर, करता पूजा पाठ ।
और दोपहरी बीतती, गिनते गिनते ठाठ।।
खूब कार्यक्रम हो रहे, जुड़ जाती है भीड़ ।
पंछी देखें एक टक, अपना सुना नीड।।
आती रहती याद अब, हर एक छोटी बात
और सोचते-सोचते, कट जाती है रात।।
बिना आग के जल रहा, झेल रहा हूं ताप।
कुछ बातें मानी नहीं, गहरा पश्चाताप।।
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
भावपूर्ण दोहे, सार्थक प्रयास
शानदार दोहे
बेहतरीन अभिव्यक्ति