श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका  पारिवारिक जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है  म प्र साहित्य अकादमी के मासिक प्रकाशन  “साक्षात्कार (बाल साहित्य विशेषांक)” – की समीक्षा।

 पुस्तक चर्चा

साक्षात्कार (बाल साहित्य विशेषांक)

अंक ४८५..४८६ संयुक्तांक नवम्बर दिसम्बर

म प्र साहित्य अकादमी का मासिक प्रकाशन

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 98 – साक्षात्कार (बाल साहित्य विशेषांक) ☆ 

साक्षात्कार का संभवतः पहला प्रयास है , अंक ४८५..४८६ संयुक्तांक नवम्बर दिसम्बर २०२० जो बाल साहित्य पर केंद्रित है, तथा इतनी महत्वपूर्ण शोध सामग्री बाल साहित्य की उपयोगिता, लेखन, बच्चों के लिये साहित्य लेखन में नवाचार, वैज्ञानिक दृष्टि, सकारात्मकभावनाओ का विकास जैसे बहुविध विषय समेटे हुये है.

३०० पृष्ठो से ज्यादा की विशद सामग्री निश्चित ही शोधार्थियो हेतु  संग्रहणीय है. यह निर्विवाद है कि बच्चो के कोरे मन पर बाल साहित्य वह पटकथा लिखता है, जो भविष्य में उनका व्यक्तित्व व चरित्र गढ़ता ह . बच्चो को विशेष रूप से गीत तथा कहानियां व नाटिकायें अधिक पसंद आती हैं. बाल साहित्य रचने के लिये बड़े से बड़े लेखक को बाल मनोविज्ञान को समझते हुये बच्चे के मानसिक स्तर पर उतर कर ही लिखना पड़ता है तभी वह रचना बाल उपयोगी बन पाती है.

हिन्दी में जितना कार्य बाल साहित्य पर आवश्यक है उससे बहुत कम मौलिक नया कार्य हो रहा है, पीढ़ीयो से वे ही बाल गीत पाठ्य पुस्तको में चले आ रहे हैं, जबकि वैज्ञानिक सामाजिक परिवर्तनो के साथ नई पीढ़ी का परिवेश बदलता जा रहा है.  

बाल कवितायें जहां जीवन पर्यंत स्मरण में रहती हैं व किंकर्तव्यविमूढ़ स्थोति में पथ प्रदर्शन करती हैं वहीं बचपन में पढ़ी गई कहानियां अवचेतन में ही व्यक्तित्व बनाती हैं. बाल कथा के नायक बच्चे के संस्कार गढ़ते हैं.

मैं इस अंक के साठ से अधिक लेखको को और उन सब को साक्षात्कार के एकल मंच पर सारगर्भित तरीके से प्रस्तुत करने के लिये संपादक डा विकास दवे जी को हृदय से शुभकामनायें देता हूँ व इस महती कार्य के लिये आभार व्यक्त करता हूँ.

समीक्षक .. विवेक रंजन श्रीवास्तव

ए १, शिला कुंज, नयागांव, जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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