श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है गरीबी से संघर्ष करते परिवार की एक संवेदनशील लघुकथा “टुकिया का झूला”। इस विचारणीय लघुकथा के लिए श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ जी की लेखनी को सादर नमन। )
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 97 ☆
लघुकथा – टुकिया का झूला
साइकिल की आवाज सुन कर वह बाहर निकली। टुकिया रोज की तरह अपने बाबा को दौड़ कर गले लगा, उनकी बाहों में छुप जाना चाहती थी।
पांच साल की टुकिया परंतु आज बाबा ने न तो टुकिया को गोद लिया और न ही उसके लिए जलेबी की पुड़िया दी। टकटकी लगाए हुए पापा की ओर देखने लगी।
परंतु उसे क्या मालूम था कि बाबा ऐसा क्यों कर रहे हैं। पापा अंदर आने पर अपनी पत्नी से पानी का गिलास लेकर कहने लगे… अब मैं बच्ची को उसकी इच्छा के अनुसार पढ़ाई नहीं करवा पाऊंगा। उसकी यह इच्छा अधूरी रहेगी, क्योंकि आज फिर से काम से निकाल दिया गया हूँ।
तो क्या हुआ बाबा… गले से झूलते हुए बोली… बाबा हम आपके साथ सर्कस जैसा काम करेंगे। हमारे पास खूब पैसे आ जाएंगे। बाबा को अपने पुराने दिन याद आ गए । उन्होंने बिटिया का माथा चूम लिया।
शाम ढले दो बांसों के बीच रस्सी बांध दिया गया। टुकिया चलने लगी सिर पर मटकी और मटकी पर जलता दिया।
दिए की लौ से प्रकाशित होता पूरा मैदान। टुकिया चलते जा रही थी, बाबा का कलेजा फटा जा रहा था। बच्चीं ने रस्सी पार कर कहा… बाबा हमें जीत मिल गई अब हम रस्सी पर खूब काम करेंगे। और देखना एक दिन आपको हवाई जहाज में घुमाएंगे।
बाबा ने सोचा क्या गरीबी का बोझ हवाई जहाज उड़ा कर ले जा सकेगी? टुकिया रस्सी पर कब तक चलेगी।
सिक्के और रुपए उसकी थाली पर गिरते जा रहे थे। तालियों की गड़गड़ाहट में उसकी सिसकियां कहाँ सुनाई देती?
© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈