श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है पर्यटन स्थल के अनुभवों पर आधारित एक संवेदनशील लघुकथा “मेहमानवाजी”। इस विचारणीय लघुकथा के लिए श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ जी की लेखनी को सादर नमन। )
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 98 ☆
? लघुकथा – मेहमानवाजी ?
सृष्टि की सुंदर मनमोहक और प्राकृतिक अनुपम सुंदरता लिए कश्मीर और श्रीनगर। श्रीनगर की शोभा बढ़ाती डल झील, पहलगाम, सोनमर्ग और गुलमर्ग । सभी एक से बढ़कर एक आंखों को सुकून देने वाले दृश्य और बर्फ से ढकी चोटियां। जहां तक नजर जाए मन आनंदित हो जा रहा था।
मनोरम वातावरण में घूमते घूमते मोनी और श्याम ने वहां पर एक कार घूमने के लिए लिया गया था। उस पर चले जा रहे थे। रास्ता बहुत ही खुशनुमा। कश्मीर का कार ड्राइवर बीच-बीच में सब बताते चला जा रहा था’ सजाद’ नाम था उसका।
हालात के कारण सभी के मुंह पर मास्क लगे हुए थे अचानक गाड़ी रोक दी गई, देखा फिर से चेकिंग शुरू। हर पर्यटक को थोड़ी- थोड़ी दूर पर चेक करते थे। गाड़ियां एक के बाद एक लगी थी। करीब एक घंटे खड़े रहे। अचानक आगे से गाड़ियां सरकती दिखी। सजाद ने भी गाड़ी बढा ली।
परंतु यह क्या पूरा रास्ता जाम हो गया, अचानक बीस पच्चीस पुलिस वाले दौड़ लगाते भागने लगे। एक पुलिस वाला गाड़ी के पास आया।
डंडे से कांच को मारकर कांच नीची करवाया और जोर से बोला… “तैने दिखाई नहीं देता के? ऐसी तैसी करनी है क्या? एंबुलेंस कहां से निकलेगी?” और वह कुछ कहता इसके पहले ही सिर पर एक कस के डंडा और सजाद के गोरे- गोरे गाल पर एक तड़ाक का चांटा!!!!!
पांच ऊंगलियों के निशान लग गए, लाल होता देख मोनी और उसके पति देव ने पुलिस वालों को सॉरी कहना चाह रहे थे कि रास्ता खाली हुआ और गाड़ियां चल पड़ी।
कार में तीनों चुपचाप थे अचानक सजाद ने कहा… “आप क्यों सॉरी बोल रहे थे? आपकी कोई गलती थोड़ी ना है। आप कोई गिल्टी फील ना करें मैडम जी। हम लोग इस के आदी हो गए हैं। “
मोनी ने कहा.. “यदि कुछ हो जाता तो ..?” बीच में बात काटकर सजाद बोला… “मैडम जी हम अपने मेहमानों को भगवान समझते हैं और भगवान को कुछ ना होने देंगे।“
खिलखिलाते हंस पड़ा मासूम सा चौबीस साल का युवा सजाद कहने लगा… “कभी-कभी एक, दो सप्ताह तक कुछ भी नहीं मिलता। कश्मीर बड़ा खुशनुमा है पर रोटी के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है।“ वह रूआँसा हो चुका था। “आप चिंता ना करें। यह सजाद आप लोगों को कुछ होने नहीं देगा। खुदा कसम हम मेहमानवाजी में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। खुदा की रहमत हैं सभी का भला होगा।“
गाड़ी अपनी रफ्तार से चली जा रही थी और सजाद की मुस्कुराहट बढ़ने लगी थीं। यह कैसी मेहमानवाजी मन में विचार करने लगे मोनी और उसके पति देव।
© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈