सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “ज़िंदगी”। )
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 93 ☆
☆ ज़िंदगी ☆
ज़िंदगी बन गयी है
कुछ ऐसे दरख़्त सी
जिसकी जड़ें खोज रही हैं
कोई ऐसी मुलायम मिट्टी
जिसको पकड़ कर वो खड़ी हो सकें,
और चूस सकें पानी और वो धातु
जिससे दरख़्त पनपता रहे
और ख़ुशी में झूमे-गाये…
पर नहीं मिलती मुलायम मिट्टी कहीं,
सारी ज़मीन हो गयी है रेत के जैसी-
फिसल रहा है दरख़्त,
फिसल रही है ज़िंदगी,
फिसल रहे हैं हम!
© नीलम सक्सेना चंद्रा
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈