श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है पारिवारिक विमर्श पर आधारित एक संवेदनशील लघुकथा “धनलक्ष्मी ”। इस विचारणीय लघुकथा के लिए श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ जी की लेखनी को सादर नमन। )
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 102 ☆
? लघुकथा – धनलक्ष्मी ?
लगातार व्यापार में मंदी और घर के तनाव से आकाश बहुत परेशान हो उठा था। घर का माहौल भी बिगड़ा हुआ था। कोई भी सही और सीधे मुंह बात नहीं कर रहा था। सभी को लग रहा था कि आकाश अपनी तरफ से बिजनेस पर ध्यान नहीं दे रहा है और घर का खर्च दिनों दिन बढ़ता चला जा रहा है।
आज सुबह उठा चाय और पेपर लेकर बैठा ही था कि अचानक आकाश के पिताजी की तबीयत खराब होने लगी घर में कोहराम मच गया। एक तो त्यौहार, उस पर कड़की और फिर ये हालात। किसी तरह हॉस्पिटल में भर्ती कराया। घर आकर पैसों को लेकर वह बहुत परेशान था कि पत्नी उमा आकर बोली… चिंता मत कीजिए सब ठीक हो जाएगा। मैं और तीनों बेटियों ने कुछ ना कुछ काम करके कुछ रुपये जमा कर रखा है, जो अब आपके काम आ सकता है। बेटियों ने ट्यूशन और सिलाई का काम किया है।
पिताजी का इलाज आराम से हो सकता है। आकाश अपनी तीनों बेटियों और पत्नी से नफरत करने लगा था। क्योंकि उसे तीन बेटियां हो गई थी। रुपयों से भरा बैग देकर उमा ने कहा… आपका ही है, आप पिताजी को स्वस्थ कर घर ले कर आइए।
आकाश अपनी पत्नी और बेटियों का मुंह देखता ही रह गया। सदा एक दूसरे को कोसा करते थे परिवार में सभी लोग। परंतु आज वह रुपए लेकर अस्पताल गया, मां समझ ना सकी कि इतने रुपए कहां से लाया।
मां ने समझाया… आज धनतेरस है शाम को मैं तेरे बाबूजी के साथ रह लूंगी। घर जा कर पूजा कर लेना।
पूजा का सामान लेकर वह घर पहुंचा। पत्नी ने सारी तैयारी कर रखी थी और तीनों बेटियों को लेकर एक जगह बैठ गई थी। आकाश ने पूजा शुरू की और आज सबसे पहले अपनी धनलक्ष्मी और धनबेटियों को पुष्प हार पहना, तिलक लगाकर वह बहुत प्रसन्न था।
मन ही मन सोच रहा था सही मायने में आज तक मैं लक्ष्मी का अपमान करता रहा आज सही धनतेरस की पूजा हुई है। उमा और तीनों बेटियां बस अपने पिताजी को देखे जा रही थी। घर दीपों से जगमगा रहा था। बेटियों ने बरसों बाद अपने पिताजी को गले लगाया और माँ के नेत्र तो आंसुओं से भीगते चले जा रहे थे।
© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈