डॉ राकेश ‘ चक्र’
(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत। इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। आप “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से उनका साहित्य आत्मसात कर सकेंगे ।
आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण गीत “बीते बचपन की यादें ”
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 84 ☆
☆ गीत – बीते बचपन की यादें ☆
धूप गुनगुनी बैठे छत पर
सेंक रहे इकले नाना।
बीते बचपन की यादों का
है सुंदर छिपा खजाना।।
गाँव था अलबेला – सा अपना
जिसमें थी पेड़ों की छइयाँ।
गौधूलि में कितनी ही आतीं
बैल, भैंस , बकरी औ गइयाँ।
फूस – छप्परों के घर सबके
क्या सुखद था इक जमाना।
बीते बचपन की यादों का
है सुंदर छिपा खजाना।।
संगी – साथी , कुआ , बाबड़ी
घने नीम की छाँव भली।
आमों के थे बाग – बगीचे
धुर देहाती गाँव – गली।
याद रहा अट्टे की छत पर
नभ के नीचे सो जाना।
बीते बचपन की यादों का
है सुंदर छिपा खजाना।।
राखी औ’ सावन के झूले
त्योहारों की धूम निराली।
पथबारी की पूजा रौनक
बजते थे डमरू औ’ थाली।
लोकगीत में मस्त मगन हो
नाच – कूद होता गाना।
बीते बचपन की यादों का
है सुंदर छिपा खजाना।।
मिट्टी के गुड़िया – गुड्डों का
मिलजुल करके ब्याह रचाए।
इक्का, ताँगा, रेढू गाड़ी
दुल्हन घूँघट से शरमाए।
ढपर – ढपर से बैंड साज पर
घोड़ी ठुम – ठुम नचकाना।
बीते बचपन की यादों का
है सुंदर छिपा खजाना।।
झर लग जाते वर्षा के जब
छतें टपाटप थी करतीं।
चौपालों में करें मसखरी
राग – मल्हारें थीं गवतीं।
टूटा घर अब हुआ खंडहर
बस केवल आज फ़साना।
बीते बचपन की यादों का
है सुंदर छिपा खजाना।।
ढकीमीचना , कंचा – गोली
गिल्लीडंडा औ’ गेंदतड़ी।
खिपड़े खूब नचा सरवर में
जल बर्षा में नाव पड़ी।
अ आ इ ई ऊ लिखें पहाड़े
शेष बचा ताना – बाना।।
बीते बचपन की यादों का
है सुंदर छिपा खजाना।।
© डॉ राकेश चक्र
(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)
90 बी, शिवपुरी, मुरादाबाद 244001 उ.प्र. मो. 9456201857
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
सुंदर रचना बधाई