डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं “भावना के दोहे ”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 106 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के दोहे ☆
अपराधी पाकर शरण,
होते धन्य सनाथ।
रहता जिनके शीश पर,
नेताजी का हाथ।।
लगा रही गोता लगन,
दो नैनों की झील।
सुध-बुध खोकर बावरा,
करता प्यार अपील।।
शिशु की पुलकन देखकर,
मन में उठी उमंग।
लगा रही है प्यार से,
माँ की ममता अंग।।
विरह प्रेम में जल रहा,
मन में एक अलाव।
शांत हुई क्रमशः जलन,
था मनुहार-प्रभाव।।
जीवन के हैं चार दिन,
करो नहीं तुम बैर।
हिल मिल कर करते रहो,
प्रेम गली की सैर।।
© डॉ.भावना शुक्ल
सहसंपादक…प्राची
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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
सुंदर भावपूर्ण दोहे बधाई