श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है सजल “… दिखे नहीं हैं ऐसे मित्र”। अब आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 8 – … दिखे नहीं हैं ऐसे मित्र ☆
सजल
समांत- इत्र
पदांत- —
मात्राभार- 14
पढ़ा सुदामा-कृष्ण चरित्र।
दिखे नहीं हैं ऐसे मित्र।।
दीवारों में टांँग रहे,
फ्रेम जड़ा कर उनका चित्र।
बुरे लोग भी चाह रहे,
सदा मिले संबंध पवित्र।
ज्ञानी होकर मूर्ख बने,
यही बात है बड़ी विचित्र।
खुद छलिया का रूप धरें,
किंतु चाहते हैं सौमित्र।
धरती ने श्रृंगार किया,
उभरा है अनुपम सुचित्र।
ईश्वर का यह रूप दिखा,
बिखरे दिकदिगंत यह इत्र ।
© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002
मो 94258 62550
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈