डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं “भावना के दोहे ”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 107 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के दोहे ☆
समय चक्र जो घूम रहा, उसने थामी डोर।
सुमिरन बस करते रहो, कब हो जाए भोर।।
पल पल की है जिंदगी, पल पल का है राग।
जीवन के इस सफर में, करो सिर्फ अनुराग।।
माटी तो है अनमोल, सब माटी बन जाय
सुंदर काया तन-मन की, माटी में मिल जाय।।
पुस्तक देती है हमें, जीवन का हर ज्ञान।
पुस्तक से ही मिल रहा, लेखक को सम्मान।।
पीड़ा मन की रच रहा, रचता रचनाकार।
युगों युगों तक हो रहा, पाठक पर उपकार।।
© डॉ.भावना शुक्ल
सहसंपादक…प्राची
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