डॉ. मुक्ता
(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य” के माध्यम से हम आपको प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू कराने का प्रयास करते हैं। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी का एक अत्यंत विचारणीय आलेख सपने वे होते हैं। यह डॉ मुक्ता जी के जीवन के प्रति गंभीर चिंतन का दस्तावेज है। डॉ मुक्ता जी की लेखनी को इस गंभीर चिंतन से परिपूर्ण आलेख के लिए सादर नमन। कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य # 108 ☆
☆ सपने वे होते हैं ☆
सपने वे नहीं होते, जो आपको रात में सोते समय नींद में आते हैं। सपने तो वे होते हैं, जो आपको सोने नहीं देते– अब्दुल कलाम जी की यह सोच अत्यंत सार्थक है कि जीवन में उन सपनों का कोई महत्व नहीं होता, जो हम नींद में देखते हैं। वे तो माया का रूप होते हैं और वे आंख खुलते गायब हो जाते हैं; उनका अस्तित्व समाप्त हो जाता है, क्योंकि सपनों को साकार करने के लिए मानव को कठिन परिश्रम करना पड़ता है; अपनी सुख-सुविधाओं को तिलांजलि देनी पड़ती है। उस परिस्थिति में मानव की रातों की नींद और दिन का सुक़ून समाप्त हो जाता है। मानव को केवल अर्जुन की भांति अपना लक्ष्य दिखाई पड़ता है, जो उन सपनों की मानिंद होता है, जो आपको सोने नहीं देते। सो! खुली आंखों से सपने देखना कारग़र होता है। इसलिए हमारा लक्ष्य सार्थक होना चाहिए और हमें उसकी पूर्ति हेतु स्वयं को झोंक देना चाहिए। वैसे काम तो दीमक भी दिन-रात करती है, परंतु वह निर्माण नहीं; विनाश करती है। इसलिए अपनी सोच को सकारात्मक रखिए, दृढ़-प्रतिज्ञ रहिए व कठिन परिस्थितियों में भी धैर्य बनाए रखिए… यही सफलता का सर्वश्रेष्ठ मार्ग है।
सो! हमें खास समय की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए, बल्कि अपने हर समय को खास बनाना चाहिए, क्योंकि आपको भी दिन में उतना ही समय मिलता है; जितना महान् लोगों को मिलता है। इसलिए समय की कद्र कीजिए। समय अनमोल है, परिवर्तनशील है, कभी किसी के लिए ठहरता नहीं है। यह आप पर निर्भर करता है कि आप समय को कितना महत्व देते हैं। इसके साथ ही मानव को यह बात अपने ज़हन में रखनी चाहिए कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता। हमें पूर्ण निष्ठा व तल्लीनता से उस कर्म को उस रूप में अंजाम देना चाहिए कि आप से अच्छा कार्य कोई कर ही ना पाए। सो! दक्षता अभ्यास से आती है। कबीर जी का यह दोहा ‘करत-करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान’ इसी भाव को परिलक्षित करता है। यदि आप में जज़्बा है, तो आप हर स्थिति में स्वयं को सबसे सर्वश्रेष्ठ साबित कर सकते हैं। गुज़रा हुआ समय कभी लौट कर नहीं आता। इसलिए हर पल को अंतिम पल मान कर हमें निरंतर कर्मरत रहना चाहिए।
‘दुनिया का उसूल है/ जब तक काम है/ तेरा नाम है/ वरना दूर से ही सलाम है’–जी हां! यही दस्तूर-ए-दुनिया है। मोमबत्ती को भी इंसान अंधेरे में याद करता है। इसलिए इसका बुरा नहीं मानना चाहिए। इंसान भी अपने स्वार्थ हेतू दूसरे को स्मरण करता है; उसके पास जाता है और यदि उसकी समस्या का हल नहीं निकलता, तो वह उससे किनारा कर लेता है। इसलिए किसी से अपेक्षा मत करें, क्योंकि उम्मीद स्वयं से करने में मानव का हित है और यह जीवन जीने की सर्वोत्तम कला है। इस तथ्य से तो आप परिचित ही होंगे– इंसान इंसान को धोखा नहीं देता, बल्कि वे उम्मीदें धोखा देती है जो वह दूसरों से करता है।
यदि सपने सच न हों, तो रास्ते बदलो, मुक़ाम नहीं। पेड़ हमेशा पत्तियां बदलते हैं; जड़ें नहीं। हर समस्या के केवल दो समाधान ही नहीं होते, इसलिए मानव को तीसरा विकल्प अपनाने की सलाह दी गई है, क्योंकि मंज़िल तक पहुंचने के लिए तीसरे मार्ग को अपनाना श्रेयस्कर है। ‘आजकल लोग समझते कम, समझाते अधिक हैं; तभी तो मामले सुलझते कम, उलझते ज़्यादा हैं।’ आजकल हर व्यक्ति स्वयं सर्वाधिक बुद्धिमान समझता है। वह संवाद में नहीं, विवाद में अधिक विश्वास रखता है। इसलिए वह आजीवन स्व-पर व राग-द्वेष के भंवर से मुक्ति नहीं प्राप्त कर सकता। सो! जिसने संसार को बदलने की कोशिश की, वह हार गया और जिसने ख़ुद को बदल लिया; वह जीत गया, क्योंकि आप स्वयं को तो बदल सकते हैं, दूसरों को नहीं। इंसान इंसान को धोखा नहीं देता, बल्कि वे उम्मीदें धोखा देती हैं, जो मानव दूसरों से करता है।
‘जीवन में लंबे समय तक शांत रहने का उपाय है– जो जैसा है, उसे उसी रूप में स्वीकारिए।’ स्वामी विवेकानंद जी की यह सीख अत्यंत सार्थक है। दूसरों को प्रसन्न रखने के लिए मूल्यों से समझौता मत करिए, आत्म-सम्मान बनाए रखिए और चले आइए।’ ख़ुद से जीतने की ज़िद्द है मुझे/ ख़ुद को ही हराना है/ मैं भीड़ नहीं हूं दुनिया की/ मेरे अंदर एक ज़माना है। जी हां! यही है सफलता पाने का सर्वश्रेष्ठ मार्ग। ‘एकला चलो रे’ के द्वारा मानव हर आपदा का सामना कर सकता है। यदि मानव दृढ़-निश्चय कर लेता है कि मुझे स्वयं पर विजय प्राप्त करनी है, तो वह नये मील के पत्थर स्थापित कर, जग में नये कीर्तिमान स्थापित कर सकता है। ‘सो! कोशिश करो और नाकाम हो जाओ, तो भी नाकामी से घबराओ नहीं। कोशिश करो, क्योंकि नाकामी सबके हिस्से में नहीं आती’– सेम्युअल बेकेट की इस सोच अनुकरणीय है, जो मानव को किसी भी परिस्थिति में पराजय स्वीकारने का संदेश देती, क्योंकि अच्छी नाकामी चंद लोगों के हिस्से में आती है। इस तथ्य को स्वीकारते हुए स्वाममी रामानुजम संदेश देते हैं कि ‘अपने गुणों की मदद से अपना हुनर निखारते चलो। एक दिन हर कोई तुम्हारे गुणों व काबिलियत पर बात करेगा।’ दूसरे शब्दों में वे अपने भीतर दक्षता को बढ़ाने पर बल देते हैं। दुनिया में सफल होने का सबसे अच्छा तरीका है–उस सलाह पर काम करना, जो आप दूसरों को देते हैं। महात्मा बुद्ध भी यही कहते हैं कि इस संसार में जो आप करते हैं, वह सब लौट कर आपके पास आता है। इसलिए दूसरों से ऐसा व्यवहार करें, जिसकी अपेक्षा आप दूसरों से करते हैं। इसके साथ ही यह भी कहा जाता है कि ‘उतना विनम्र बनो, जितना ज़रूरी हो। बेवजह की विनम्रता दूसरों के अहम् को बढ़ावा देती है, क्योंकि आदमी साधन से नहीं, साधना से श्रेष्ठ बनता है। आदमी उच्चारण से नहीं, उच्च आचरण से श्रेष्ठ बनता है। सो! तप कीजिए, साधना कीजिए, क्योंकि मानव के अच्छे आचरण की हर जगह सराहना होती है। व्यक्ति का सौंदर्य महत्व नहीं रखता, उसके गुणों की समाज में सराहना होती है और वह अनुकरणीय बन जाता है। शायद इसलिए मानव को ऐसी सीख दी गई है कि सलाह हारे हुए की, तुज़ुर्बा जीते हुए का और दिमाग़ ख़ुद का– इंसान को ज़िंदगी में कभी हारने नहीं देता। मानव को अपने मस्तिष्क से काम लेना चाहिए, व्यर्थ दूसरों के पीछे नहीं भागना चाहिए। वैसे दूसरों के अनुभव से लाभ उठाने वाले बुद्धिमान कहलाते तथा सफलता प्राप्त करते हैं।
‘पांव हौले से रख/ कश्ती में उतरने वाले/ ज़मीं अक्सर किनारों से/ खिसका करती है’ के माध्यम से मानव को जीवन में समन्वय व सामंजस्य रखने का संदेश दिया गया है। यदि मानव शांत भाव से अपना कार्य करता है, धैर्य बनाए रखता है, तो उसे असफलता का मुख कभी नहीं देखना पड़ता। यदि वह तल्लीनता से कार्य नहीं करता और तुरंत प्रतिक्रिया देता है, तो वह परेशानियों से घिर जाता है। इसलिए मानव को विषम परिस्थितियों में भी अपना आपा नहीं खोना चाहिए। इसके साथ ही आप जो भी स्वप्न देखें, उसकी पूर्ति में स्वयं को झोंक दें; अनवरत कर्मरत रहें और तब तक चैन से न बैठें, जब तक आप अपनी मंज़िल तक न पहुंच जाएं। वास्तव मेंं मानव को ऐसे सपने देखने चाहिएं, जो हमें सही दिशा-निर्देश दें, हमारा पथ-प्रशस्त करें और हमारे अंतर्मन में उन्हें साकार करने का जुनून पैदा कर दें। आप शांत होकर तभी बैठें, जब हम अपनी मंज़िल को प्राप्त करे लें। ‘सावधानी हटी, दुर्घटना घटी’ इस तथ्य से तो आप सब अवगत होंगे कि असावधानी ही दुर्घटना का कारण होती है। इसलिए हमें सदैव सचेत, सजग व सावधान रहना चाहिए, क्योंकि लोग हमारे पथ में असंख्य बाधाएं उत्पन्न करेंगे, विभिन्न प्रलोभन देंगे, अनेक मायावी स्वप्न दिखाएंगे, ताकि हम अपने लक्ष्य की प्राप्ति न कर सकें। परंतु हमें सपनों को साकार करने को दृढ़ निश्चय रखना है और दिन-रात स्वयं को परिश्रम रूपी भट्टी में झोंक देना है। सो! स्वप्न देखना मानव के लिए उपयोगी है, कारग़र है, सार्थक है और साधना का सोपान है।
© डा. मुक्ता
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