श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक अतिसुन्दर एवं विचारणीय कविता “दुखों का सुख…..”। )
☆ तन्मय साहित्य #108 ☆
☆ दुखों का सुख….. ☆
दुखों का सुख….
घावों को अपने
उघाड़-उघाड़ कर
दर्द को बार-बार कुरेदना
जतन से सहलाते हुए
दुखों को अंतस में सहेजना
अच्छा लगता है।
रुग्ण वेदना में भी
दुख का सुख पीना
अपने खालीपन को
दुखों से भर कर जीना
बाहर उलीचने के बजाय
उन्हें रात दिन सींचना
अच्छा लगता है।
कभी प्रवक्ता बन दुखों का
कारुणिक बखान करना
आँखों में अश्रुजल भरना
पीड़ा के स्थाई भाव
प्रदर्शित कर दूजों से
सहानुभूति प्राप्त करना
अच्छा लगता है।
हमारे दुखी होने से
आपका सुखी होना
और आपके सुख से
हमारा दुखी होना
सप्रयास दुख कमाना
सुखों को भी
दुख का आवरण पहनाना
अच्छा लगता है।
सुखों की सुरक्षा को
दुख का ताला
गहन अंधेरे के बाद
किरण भर उजाला
बन्द कर स्वयं को
फिर चाबियाँ सँभालना
अच्छा लगता है
© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈