श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का हिन्दी बाल -साहित्य एवं हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य” के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा “भ्रष्टाचार पर विजय”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 96 ☆
☆ लघुकथा — भ्रष्टाचार पर विजय ☆
मोहन ने कहा,” अपना ठेकेदारी का व्यवसाय है। इसमें दलाली, कमीशन, रिश्वत खोरी के बिना काम नहीं चल सकता है।”
रमन कब पीछे रहने वाला था,” भाई! मुझे आरटीओ के यहां से लाइसेंस बनवाने का काम करवाना पड़ता है। लोग बिना ट्रायल के लाइसेंस बनवाते हैं। यदि पैसा ना दूं तो काम नहीं चल सकता है।”
” वह तो ठीक है,” कमल बोला,” व्यापार अपनी जगह है पर रिश्वतखोरी हो तो बुरी है ना। नेता लोग करोड़ों डकार जाते हैं। बिना रिश्वत के रेल का बर्थ रिजर्व नहीं होता है। डॉक्टर बनने के लिए लाखों करोड़ों की रिश्वत देना पड़ती है। तब बच्चा डॉक्टर बनता है। यह तो गलत है ना।”
” हां हां, हम रिश्वत क्यों दें।” एक साथ कई आवाजें गुंजीं,” हमें अन्ना के आंदोलन का साथ देना चाहिए।”
तब काफी सोचविचार व विमर्श के बाद यह तय हुआ कि कल सभी औरतें अपने हाथों में मोमबत्ती जलाकर रैली निकालेगी और अंत में रिश्वत नहीं देने की शपथ लेगी। सभी ने यह प्रस्ताव पारित किया और अपनी-अपनी पत्नियों को रैली में सम्मिलित कराने हेतु घर की ओर चल दिए।
सभी के चेहरे पर भ्रष्टाचार पर विजय पाने की मुस्कान तैर रही थी।
© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
18-08-2011
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