(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी द्वारा लिखित एक विचारणीय व्यंग्य ‘कंफ्यूजन में ग्लैमर का फ्यूजन’ । इस विचारणीय आलेख के लिए श्री विवेक रंजन जी की लेखनी को नमन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 128 ☆
व्यंग्य – कंफ्यूजन में ग्लैमर का फ्यूजन
कंफ्यूजन का मजा ही अलग होता है. तभी तो लखनऊ में नबाब साहब ने भूल भुलैया बनवाई थी. आज भी लोग टिकिट लेकर वहां जाते हैं और खुद के गुम होने का लुत्फ उठाते हैं. हुआ यों था कि लखनऊ में भयंकर अकाल पड़ा, पूरा अवध दाने दाने का मोहताज हो गया. लोग मदद मांगने नवाब के पास गये. वजीरो ने सलाह दी कि खजाने में जमा राशि गरीबो में बाँट दी जाये. मगर नवाब साहब का मानना था की खैरात में धन बांटने से लोगो को हराम का खाने की आदत पड़ जाएगी. इसलिए उन्होंने रोजगार देने के लिए एक इमारत का निर्माण करवाया जिसको बाद में बड़ा इमामबाड़ा नाम दिया गया. इमामबाड़े में असफी मस्जिद, बावड़ी और भूलभुलैया है. दिल्ली में भी भूल भुलैया है, जो लोकप्रिय पर्यटन स्थल है. कई बाग बगीचों में भी इसी तर्ज पर ऐसी पौध वीथिकायें बनाई गई हैं जहां गुम होने के लिये प्रेमी जोडे दूर दूर से वहां घूमने चले आते हैं.
दरअसल कंफ्यूजन में मजे लेने का कौशल हम सब बचपन से ही सीख जाते हैं. कोई भी बाल पत्रिका उठा लें एक सिरे पर बिल्ली और दूसरे सिरे पर चूहे का एक क्विज मिल ही जायेगा, बीच में खूब लम्बा घुमावदार ऊपर नीचे चक्कर वाला, पूरे पेज पर पसरा हुआ रास्ता होगा. बिना कलम उठाये बच्चे को बिल्ली के लिये चूहे तक पहुंचने का शार्टेस्ट रास्ता ढ़ूंढ़ना होता है. खेलने वाला बच्चा कंफ्यूज हो जाता है, किसी ऐसे दो राहे के चक्रव्यू में उलझ जाता है कि चूहे तक पहुंचने से पहले ही डेड एंड आ जाता है.
कंफ्यूजन में यदि ग्लैमर का फ्यूजन हो जाये, तो क्या कहने. चिंकी मिन्की, एक से कपड़ो में बिल्कुल एक सी कद काठी,समान आवाज वाली, एक सी सजी संवरी हू बहू दिखने वाली जुड़वा बहने हैं. यू ट्यूब से लेकर स्टेज शो तक उनके रोचक कंफ्यूजन ने धमाल मचा रखा है. कौन चिंकि और कौन मिंकी यह शायद वे स्वयं भी भूल जाती हों. पर उनकी प्रस्तुतियों में मजा बहुत आता है. कनफ्यूज दर्शक कभी इसको देखता है कभी उसको, उलझ कर रह जाता है, जैसे मिरर इमेज हो. पुरानी फिल्मो में जिन्होने सीता और गीता या राम और श्याम देखी हो वे जानते है कि हमारे डायरेक्टर डबल रोल से जुडवा भाई बहनो के कंफ्यूजन में रोमांच, हास्य और मनोरंजन सब ढ़ूंढ़ निकालते की क्षमता रखते हैं.
कंफ्यूजन सबको होता है, जब साहित्यकार को कंफ्यूजन होता है तो वे संदेह अलंकार रच डालते हैं. जैसे कि “नारी बिच सारी है कि सारी बिच नारी है”. कवि भूषण को यह कंफ्यूजन तब हुआ था, जब वे भगवान कृष्ण के द्रोपदी की साड़ी अंतहीन कर उनकी लाज बचाने के प्रसंग का वर्णन कर रहे थे.
यूं इस देश में जनता महज कंफ्यूज दर्शक ही तो है. पक्ष विपक्ष चिंकी मिंकी की तरह सत्ता के ग्लेमर से जनता को कनफ्युजियाय हुये हैं. हर चुनावी शो में जनता बस डेड एंड तक ही पहुंच पाती है. इस एंड पर बिल्ली दूध डकार जाती है, उस एंड पर चूहे मजे में देश कुतरते रहते हैं. सत्ता और जनता के बीच का सारा रास्ता बड़ा घुमावदार है. आम आदमी ता उम्र इन भ्रम के गलियारों में भटकता रह जाता है. सत्ता का अंतहीन सुख नेता बिना थके खींचते रहते हैं. जनता साड़ी की तरह खिंचती, लिपटती रह जाती है. अदालतो में न्याय के लिये भटकता आदमी कानून की किताबों के ककहरे,काले कोट और जज के कटघरे में सालों जीत की आशा में कनफ्यूज्ड बना रहता है.
चिंकी मिंकी सा कनफ्यूजन देश ही नही दुनियां में सर्वव्याप्त है. दुनियां भ्रम में है कि पाकिस्तान में सरकार जनता की है या मिलिट्री की.वहां की मिलिट्री इस भ्रम में है कि सरकार उसकी है या चीन की और जमाना भ्रम में है कि कोरोना वायरस चीन ने जानबूझकर फैलाया या यह प्राकृतिक विपदा के रूप में फैल गया. इस और उस वैक्सीन के समाचारो के कनफ्यूजन में मुंह नाक ढ़ांके हुये लगभग बंद जिंदगी में दिन हफ्ते महीने निकलते जा रहे हैं. अपनी दुआ है कि अब यह आंख मिचौली बंद हो, वैक्सीन आ जाये जिससे कंफ्यूजन में ग्लैमर का फ्यूजन चिंकी मिंकी शो लाइव देखा जा सके.
© विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
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