डॉ कुंदन सिंह परिहार
(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय डॉ कुन्दन सिंह परिहार जी का साहित्य विशेषकर व्यंग्य एवं लघुकथाएं ई-अभिव्यक्ति के माध्यम से काफी पढ़ी एवं सराही जाती रही हैं। हम प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहते हैं। डॉ कुंदन सिंह परिहार जी की रचनाओं के पात्र हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं। उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज प्रस्तुत है आपका एक अतिसुन्दर व्यंग्य ‘कलियुग में चमत्कार। इस अतिसुन्दर व्यंग्य रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)
☆ व्यंग्य – कलियुग में चमत्कार ☆
एस.पी.साहब दूसरे शहर से बदली होकर आये थे। चार महीने बाद उनके पुत्र की शादी हुई। इंस्पेक्टर प्रीतमलाल को बुलाया, कहा, ‘शामियाना, केटरिंग और रोशनी का इंतज़ाम करो। जो भी पेमेंट बनेगा कर दिया जाएगा। एडवांस देना ज़रूरी हो तो वह भी दिया जा सकता है। इंतज़ाम बढ़िया होना चाहिए।’
प्रीतमलाल ने सैल्यूट मारा, कहा, ‘हो जाएगा, सर,बढ़िया इन्तज़ाम हो जाएगा। आप निश्चिंत रहें।’
प्रीतमलाल मोटरसाइकिल लेकर पंजाब टेंट हाउस के सरदार जी के पास पहुँचे। कहा, ‘एस पी साहब के यहाँ अगली पच्चीस की शादी है। इन्तज़ाम करना है। नोट कर लो।’
सुनकर सरदार जी का मुँह उतर गया। कुछ सेकंड मुँह से बोल नहीं निकला। गला साफ करके ज़बरदस्ती प्रसन्नता दिखाते हुए बोले, ‘हो जाएगा, साब, बिलकुल हो जाएगा। आप फिकर मत करो। आप का काम नहीं होगा तो किसका होगा?’
इंस्पेक्टर साहब बोले, ‘पेमेंट की चिन्ता मत करना। साहब ने कहा है कि हो जाएगा।’
सरदार जी ने फीकी मुस्कान के साथ जवाब दिया, ‘वो ठीक है सर। कोई बात नहीं है। इन्तजाम हो जाएगा। डिपार्टमेंट का काम अपना काम है।’
इंस्पेक्टर साहब ने पूछा, ‘कुछ एडवांस वगैरः की ज़रूरत है क्या?’
सरदार जी घबराकर बोले, ‘अरे नहीं सर। एडवांस का क्या होगा?कोई प्राब्लम नहीं है। आपका काम हो जाएगा।’
प्रीतमलाल संतुष्ट होकर लौट गये।
एस. पी. साहब के पुत्र की शादी हुई। इन्तज़ाम एकदम पुख्ता था। लंबा चौड़ा शामियाना लगा,नीचे कुर्सियों और सोफों की लम्बी कतार। जगमग करती रोशनी। खाने के लिए बड़े दायरे में फैले बूथ। आजकल के फैशन के हिसाब से तरह तरह की भोजन-सामग्री। सारा इंतज़ाम एस. पी.साहब की पोज़ीशन के हिसाब से। मेहमान खूब खुश होकर गये।
सबेरे सब काम सिमट गया। शामियाना, कुर्सियां, बूथ, देखते देखते सब ग़ायब हो गये।
चार पाँच दिन बाद इंस्पेक्टर प्रीतमलाल फिर सरदार जी के पास पहुँचे। बोले, ‘चलो सरदार जी, साहब ने हिसाब के लिए बुलाया है।’
सरदार जी सुनकर परेशान हो गये। बोले, ‘किस बात का हिसाब जी?’
इंस्पेक्टर ने कहा, ‘क्यों, शादी के इन्तज़ाम का हिसाब नहीं करना है?’
सरदार जी हाथ हिलाकर बोले, ‘कोई हिसाब नहीं है सर। आपका काम हो गया, हिसाब की क्या बात है?’
दरोगा जी बोले, ‘ये साहब ज़रा दूसरी तरह के हैं। धरम-करम वाले हैं। बिना हिसाब किये नहीं मानेंगे। चलो,हिसाब कर लो।’
सरदार जी और परेशान होकर बोले, ‘नईं सर,माफ करो। कोई हिसाब किताब नहीं है। आप खुश खुश घर जाओ। साहब से हमारा सलाम बोलना।’
प्रीतमलाल भी कुछ परेशान हुए। समझाकर बोले, ‘अरे चलो सरदार जी,साहब सचमुच हिसाब करना चाहते हैं।’
सरदार जी हाथ जोड़कर बोले, ‘जुरूर हमसे कोई गलती हुई है जो आप हिसाब की बात बार बार कर रहे हैं। बताओ जी क्या गलती हुई?’
प्रीतमलाल ने हँसकर जवाब दिया, ‘अरे कोई गलती नहीं है। चलो, चल कर अपना पैसा ले लो।’
सरदार जी ने अपनी हिसाब की नोटबुक उठायी और उसके पन्ने पलटने लगे। फिर बोले, ‘सर जी, हमारे खाते में तो आपका कोई काम हुआ ही नहीं।’
प्रीतमलाल आश्चर्य से बोले, ‘क्या?’
सरदार जी पन्ने पलटते हुए बोले, ‘इसमें तो कहीं आपका हिसाब चढ़ा नहीं है। हमारी दुकान से तो आपका काम हुआ नहीं।’
प्रीतमलाल विस्मित होकर बोले, ‘शादी में इन्तज़ाम आपका नहीं था?’
सरदार जी फिर नोटबुक पर नज़र टिकाकर बोले, ‘इस नोटबुक के हिसाब से तो नहीं था, सर।’
प्रीतमलाल बोले, ‘लेकिन मैं तो आपको आर्डर देकर गया था।’
सरदार जी ने जवाब दिया, ‘जुरूर दे गये थे, लेकिन उस दिन की बुकिंग दूसरी जगह की पहले से थी। मैं आपको बताना भूल गया था। बाद में मैंने बहुत कोशिश की, लेकिन आपसे कंटैक्ट नहीं हुआ।’
प्रीतमलाल परेशान होकर लौट गये।
एस.पी.साहब को बताया तो साहब ने सरदार जी को तलब किया। सरदार जी अपनी नोटबुक लिये पहुँचे।
साहब ने पूछा, ‘सरदार जी, अपना हिसाब क्यों नहीं बता रहे हैं?’
सरदार जी ने बड़ी सादगी से जवाब दिया, ‘सर जी, हमने तो आपका कोई काम किया ही नहीं। हिसाब कैसे बतायें?हमारी नोटबुक में तो कुछ चढ़ा ही नहीं। जुरूर कुछ गल्तफैमी हुई है।’
एस.पी. साहब हँसे, बोले, ‘हम खूब समझते हैं। नाटक मत करो,सरदार जी। अपना पैसा ले लो।’
सरदार जी अपने कानों को हाथ लगाकर बोले, ‘हम सच बोल रहे हैं, सर जी। हमारी दुकान से आपका काम नहीं हुआ।’
एस. पी. साहब बोले, ‘बहुत हुआ सरदार जी। अपने पैसे ले लो।’
सरदार जी दुखी भाव से बोले, ‘कैसे ले लें, सर जी?हम बिना काम का पैसा लेना गुनाह समझते हैं।’
एस.पी.साहब निरुत्तर हो गये। उसके बाद दो तीन बार इंस्पेक्टर प्रीतमलाल फिर गये, लेकिन सरदार जी की नोटबुक यही कहती रही कि उन्होंने एस.पी.साहब के यहाँ कोई काम नहीं किया। प्रीतमलाल ने उनसे कहा कि कई लोगों ने उन्हें वहाँ इन्तज़ाम में लगा देखा था तो उनका जवाब था कि कोई उनका हमशकल होगा, वे तो उस दिन एसपी साहब के बंगले के आसपास भी नहीं गये।
उनसे यह भी कहा गया कि शादी के दिन आये सामान पर ‘पंजाब टेंट हाउस’ लिखा देखा गया था। उस पर भी सरदार जी का जवाब था, ‘नईं जी। जुरूर आपको गल्तफैमी हुई होगी।’
उसके बाद पुलिस हल्के में चर्चा चल पड़ी कि कैसे जिन सरदार जी को काम दिया गया था वे तो एस. पी.साहब के बंगले पर पहुँचे ही नहीं और फिर भी किसी चमत्कार से सारा काम हो गया। पुलिस हल्के से निकलकर यह चर्चा पूरे शहर में फैल गयी। लोग पुरानी कथाओं के उदाहरण देकर सिद्ध करने लगे कि यह घटना नयी नहीं है। पहले भी भगवान ने आदमी का रूप धारण कर कई बार भक्तों को संकट से बचाया है। इस घटना से सिद्ध हुआ कि कलियुग में भी चमत्कार संभव है।
© डॉ कुंदन सिंह परिहार
जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈