डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं।आज  प्रस्तुत है आपका एक अतिसुन्दर व्यंग्य  घर की ख़ुशहाली के चन्द नायाब नुस्खे’। इस अतिसुन्दर व्यंग्य रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 117 ☆

☆ व्यंग्य – घर की ख़ुशहाली के चन्द नायाब नुस्खे 

हर दूसरे चौथे घर की सुख-शान्ति के लिए विद्वानों और विदुषियों की नसीहतें पढ़ते पढ़ते आँखें दुखने लगीं। खास बात यह है कि ज़्यादातर नसीहतें गृहलक्ष्मी को ही दी जाती हैं। गृहनारायण को सलाहें कम दी जाती हैं क्योंकि घर की सुख-शान्ति का ठेका मुख्यतः पत्नी का ही होता है।

पढ़ते पढ़ते मन में आया कि मैं भी अपने बहुमूल्य जीवन के बहुमूल्य अनुभवों में से कुछ मोती भारतीय परिवारों के लाभार्थ टपकाऊँ। पेशे से अध्यापक हूँ, इसलिए अपनी नसीहत बिन्दुवार नीचे पेश कर रहा हूँ—

  1. स्त्री गृहलक्ष्मी होती है, अतः वह लक्ष्मी की ही तरह सदा घर में चलायमान रहे। घर को सजाने-संवारने में लगी रहे। पति, बच्चों, संबन्धियों की सेवा से कभी विश्राम न लेवे, और मुख पर मनोहारी मुस्कान धारण किये रहे।
  2. रोज मुँह-अँधेरे सबसे पहले उठे और रात को सबसे अन्त में सोवे। सर्वश्रेष्ठ गृहलक्ष्मी वह है जिसे कोई सोता हुआ न देख पावे।
  3. पुरुष का मन स्वभाव से चंचल होता है, अतः उसे घर में बाँधे रहने के लिए अपने रूप रंग को सदैव संवारकर रखे। कभी मलिन वस्त्र न धारण करे। आलता, लिपस्टिक, फूलों, सुगंध का भरपूर उपयोग अपने रूप में चार चाँद लगाने के लिए करे। सुन्दर आभूषण धारण करे। गली- नुक्कड़ों में खुले ब्यूटी-पार्लरों की मदद लेवे।
  4. घर में झगड़ा होवे तो चुप्पी धारण किये रहे। पतिदेव आँय-बाँय बकें तो एक कान से सुने और दूसरे से निकाल देवे। इस हेतु कानों को हमेशा साफ रखे। पति हाथ-पाँव चलाये तो उसे फूलों की तरह झेले।
  5. अगर पति किसी दूसरी स्त्री के चक्कर में पड़ जाए तो धीरज न खोवे और झगड़ा-फसाद न करे। पति की सेवा दुगने उत्साह से करती रहे। अन्ततः जहाज का पंछी पुनि जहाज पर आवेगा। (कहाँ जावेगा?)
  6. पति को साक्षात परमेश्वर माने और उनके दोनों चरनों में चारों धाम माने। इस भाव से रहने पर घर मन्दिर बनेगा और तीर्थयात्रा पर होने वाला खर्च बचेगा।
  7. पति बिना सूचना दिये आधी रात को चार छः दोस्तों को ले आवे और भोजन की फरमाइश करे तो बिना माथे पर शिकन लाये भोजन बनावे और प्रसन्न भाव से खिलाकर उन्हें विदा करे।जाते बखत उनसे कहे कि पुनः ऐसे ही पधारकर कष्ट देवें।
  8. आजकल दारूखोरी आम बात है। पति पीकर आवे और बिस्तर पर लुढ़क जावे तो उसके जूते-मोजे उतारकर उसे ठीक से पहुड़ा देवे। अगर वमन आदि करे तो उसे साफ कर देवे और मन में ग्लानि न लावे। पति के मित्र वमन कर दें तो उसे भी प्रसन्न भाव से साफ कर देवे।
  9. पति की रुचि के व्यंजन बनावे और मना मना के पति को ठुँसावे। पति को रुचने वाले वस्त्र-आभूषण पहरे और वैसे ही उठे बैठे जैसे पति को भावे।
  10. पति को पसन्द न हो तो अड़ोस पड़ोस में कहीं न जावे। सनीमा भी न जावे। घर की चारदीवारी को ही स्वर्ग समझकर उसी में स्वर्गवासी बनी रहे।
  11. अगर बार बार कहने पर भी पति बाजार जाकर सामान न लावे, खटिया तोड़ता पड़ा रहे, तो मन में क्रोध या दुख न लावे। प्रसन्न भाव से खुद बाजार जावे और सामान ले आवे।
  12. अगर पति घर के खर्च के लिए पैसे देने में किचकिच करे तो मन को न बिगाड़े। अड़ोस पड़ोस से उधार माँग लेवे या मायके से मँगा लेवे।
  13. मायके से कोई आवे तो फालतू प्रसन्नता जाहिर न होने देवे। ओठों के कोनों को दबा कर रखे। ज्यादा स्वागत सत्कार न करे, न ज्यादा सम्मान-प्यार देवे। जब पति के घरवाले आवें तब खूब प्रसन्नता दिखावे और खूब आवभगत करे। पति मायके वालों को गाली देवे तो रिस न करे। उत्तम स्थिति यह है कि पत्नी पति के घर में प्रवेश करते ही मायके वालों को पूर्णतया बिसरा देवे। वे नारियाँ धन्य हैं जो चार के कंधे पर (डोली में) पति के घर में प्रवेश करती हैं और फिर सीधे चार के कंधे पर ही निकलती हैं (समझ गये होंगे)। ऐसी सन्नारियों के पति उनसे सदैव प्रसन्न रहते हैं।
  14. जिस दिशा में पति उंगली उठाये,उसी दिशा में चले, भले ही गड्ढे में गिर जावे।
  15. यदि पति पसन्द न करे तो कोई घरेलू धंधा न करे।बैठे बैठे आराम से मक्खियाँ मारे और जो पति देवे उसी में संतोष करे।
  16. कभी भूल कर भी पति की निन्दा न करे।यदि पति निन्दा करे तो उसे प्रशंसा मान के ग्रहण करे।
  17. चोरी से पति की जेब से पैसा कभी न निकाले। पतिदेव आपके पर्स से निकाल लें तो ऐसे दिखावें जैसे कुछ न हुआ हो।
  18. लड़ाई-झगड़ा कभी ऊँची आवाज़ में न करे।झगड़े के वक्त आवाज़ धीमी रखे।बिना चिल्लाये भी बहुत असरदार झगड़ा किया जा सकता है।झगड़ा करते वक्त टीवी या म्यूज़िक सिस्टम की आवाज़ ऊँची करना न भूले।
  19. अपने को सदा सीता-सावित्री का अवतार समझे, भले ही पति रावण-कुंभकरन का टू-इन-वन संस्करण हो।
  20. तीजा, करवाचौथ के व्रत पूरी निष्ठा से रखे और मनावे कि यही पति जनम जनम हमारे हिस्से में आवे। (इस वास्ते जनम जनम तक स्त्री ही बने रहने के लिए सहमति देवे।) अपने व्रत के दिन पतिदेव को नाना व्यंजन बनाकर खिलावे।

मुझे विश्वास है कि यदि गृहिणियाँ इन बेशकीमती सुझावों को हृदयंगम करेंगीं तो उनका दांपत्य जीवन लाखों में एक होगा। इन सुझावों का प्रचार-प्रसार कर इन्हें अन्य गृहिणियों तक पहुँचावें, और उनसे होने वाले लाभों को हम तक पहुँचावें।


© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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