श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज प्रस्तुत हैं समसामयिक विषय पर एक अतिसुन्दर एवं विचारणीय कविता “सहमी गौरैया बैठी है…..”। )
☆ तन्मय साहित्य #110 ☆
☆ कविता – सहमी गौरैया बैठी है…..☆
(एक प्रयोग – न्यूज पेपर पढ़ते हुए बनी एक अखबारी कविता)
कॉन्फ्रेंस कौवों की मची हुई है
काँव-काँव की धूम
सहमी गौरैया बैठी है
एक तरफ होकर गुमसूम।
एक ओर सब्सिडी वाला
चालू है गिद्धों का भोज
बोनी-टोनी, ऊसी-पूसी
ताके-झाँके डगियन फ़ौज,
शाख-शाख पर रंग बदलते
गिरगिटिया नजरें मासूम
सहमी गौरैया बैठी है
मन मसोस होकर गुमसूम।
तोतों की है बंद पेंशन
बाजों के अपने कानून
निरीह कपोतों की गर्दन पर
इनके हैं निर्मम नाखून,
इधर बिके बिन मोल पसीना
उधर निकम्मों को परफ्यूम
सहमी गौरैया बैठी है
मन मसोस होकर गुमसूम।
जन सेवक बनकर शृगाल
जंगल में डोंडी पीट रहे
अमन-चैन में है जंगल अब
हँसी-खुशी दिन बीत रहे,
चकित शेर है देख, भेड़ियों के
सिर पर चंदन कुंकूम
सहमी गौरैया बैठी है
मन मसोस होकर गुमसूम।
© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश
मो. 9893266014
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
उत्कृष्ट सारगर्भित रचना प्रस्तुति,उपमा का व्यंगात्मक लहजे में आज की राजनीति पर कराया प्रहार, बधाई अभिनंदन अभिवादन आदरणीय श्री आप का।