श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

 

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी की लघुकथाएं शृंखला में आज प्रस्तुत हैं उनकी एक बेहतरीन लघुकथा “लघु कथा -संस्मरण -नाम की महिमा”।  श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ़ जी  ने  इस लघुकथा के माध्यम से  एक सन्देश दिया है कि कैसे धार्मिक स्थल पर तीर्थयात्रियों को श्रद्धा एवं अज्ञात भय से परेशान किया जाता है किन्तु, उनसे सुलझाने के लिए त्वरित कदम उठाना आवश्यक है।  ) 

 

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी की लघुकथाएं # 17 ☆

 

☆ लघु कथा – संस्मरण – नाम की महिमा ☆

 

हमारे यहाँ हिंदू धर्म में आस्था का बहुत ही बड़ा महत्व है। इसका सबूत है कि यहां पेड़- पौधे, फूल-पत्तों, नदी-पर्वत, कोई गांव, कोई विशेष स्थान अपना अलग ही महत्व लिए हुए हैं। चारों धाम, द्वादश ज्योतिर्लिंग और ना जाने कितने धर्म स्थल अपने विशेष कारणों से प्रसिद्ध हुए हैं। जहाँ पर ना जाने हमारे 33 करोड़ देवी देवताओं का निवास (पूजन स्थल) माना गया है। ऐसी ही एक सच्ची घटना का उल्लेख कर रही हूँ।

बात उन दिनों की है जब हम सपरिवार श्री जगन्नाथ जी का दर्शन करने पुरी उड़ीसा गए हुए थे। वहाँ पर उस समय स्पेशल दर्शन और सामान्य दर्शन का बोलबाला था। कहते हैं जहां आस्था है वहां विश्वास जुड़ा हुआ है। हम भी भक्ति से पूर्ण आस्था लिए श्री जगन्नाथ जी के  दर्शन किए। पुजारी जी ने बताया कि श्री जगन्नाथ जी के दर्शन के बाद यहाँ पर साक्षी गोपाल जाना पड़ता है। तभी यहां की यात्रा पूर्ण मानी जाती है। “मैं” यहीं तक हूं वहां पर आपको दूसरे पुजारी जी दर्शन करवाएंगे। यात्रा को पूरा करने हम भी वहां पहुंच गए। वहां पर पंडित तिलक धारियों का मजमा लगा हुआ था। सभी अपनी तरफ आने और दर्शन करा देने की बात कर रहे थे।

बात होने के बाद दर्शन के लिए जाने लगे तब पंडित जी ने अलग से दक्षिणा की बात की। लड़ाई करने लगा, बात बहुत बढ़ गई। गुस्से से हम भी परेशान और व्याकुल हो गए। दर्शन के बाद पंडित जी कहने लगे आपकी यात्रा अधूरी मानी गई, क्योंकि आपने अभी गोपाल को चढ़ावा नहीं किया, क्या सबूत होगा की आप यहां आए थे। और बहुत सारी बातों को लेकर कोसने लगा।

बात बहुत बढ़ जाने के बाद आगे आकर मैं कुछ शांत होने को कहकर समझाने की कोशिश करने लगी। पंडित जी से बोली की बताएं आपके साक्षी गोपाल भगवान कैसे सिद्ध करेंगे कि हम यहां आए थे। इस पर वह और क्रोधित हो गए। कहने लगे भगवान पर उंगली उठाते हो यह आपके कर्म के साथ ही जाएंगे और लेखा-जोखा होगा। उस समय मेरी बिटिया भी मेरे साथ थी, जिसका नाम ‘साक्षी’ है।

मैंने कहा पंडित जी से यह मेरी साक्षी है, मेरे जीते जी और मेरे मरने के बाद भी जब कभी भी बात होगी, जगन्नाथ जी और साक्षी गोपाल की, तब-तब ये कहेगी कि मम्मी-पापा के साथ मैं यहां आई थी। और यह ही मेरी साक्षी है। मुझे आपके साक्ष्य की जरूरत नहीं कि हम यहां आए हैं। पुजारी जी का गुस्सा जो आसमान पर था, लाल चेहरा एकदम शांत हो गया। हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। कहने लगा मैंने पैसों के लालच में एक सच्चे भक्तों को दर्शन के लिए परेशान किया। मुझे क्षमा करें। आज भी उस घटना कोई याद करके कहना पड़ता है कि नाम की महत्ता भी बहुत होती है। इसीलिए घर में नए शिशु के जन्म के बाद नामकरण के समय परिवार के सभी बड़े बुजुर्गों का मान रखते हुए नाम को भी सोच समझ कर रखना चाहिए, अच्छा होगा।

अपने संस्कारों को ध्यान में रखकर नामकरण होना चाहिए।

 

 

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