श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय  लघुकथा  “क्या बोले?।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 101 ☆

☆ लघुकथा — क्या बोले? ☆ 

आज वह स्कूल से आई तब बहुत खुश थी। चहकते हुए बोली, ” मम्मीजी! आप मुझे रोज डांटती थी ना।”

” हां। क्योंकि तू शाला में कुछ ना कुछ चीजें रोज गुमा कर आती है।”

” तब तो मम्मीजी आप बहुत खुश होंगी,”  उसने अपने बस्ते को पलटते हुए कहा।

” क्यों?” मम्मी ने पूछा,” तूने ऐसा क्या कमाल कर दिया है?”

” देखिए मम्मीजी,” कहते हुए उसने बस्ते की ओर इशारा किया,” आज मैं सब के बस्ते से पेंसिल ले-लेकर आ गई हूं।”

” क्या!” पेंसिल का ढेर देखते ही मम्मीजी आवक रह गई। उसने झट से ने खोला और कहना चाहा,” अरे बेटा, तू तो चोरी करके लाई हैं।” मगर वह बोल नहीं पाए।

बस कुछ सोचते हुए चुपचाप रह गई।

 

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

09-11-2021

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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