श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है सजल “कैसी यह लाचारी है… ”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 15 – सजल – कैसी यह लाचारी है… ☆
समांत- आरी
पदांत- है
मात्राभार- 14
कैसी यह लाचारी है।
विकट समस्या भारी है।।
फिदा पड़ोसी पर होते ,
मजहब से ही यारी है।
आतंकी सब सखा बने,
मानवता भी हारी है ।
काश्मीर में शांति आई,
खिली वहांँ फुलवारी है।
लोकतंत्र में भ्रष्टाचार,
जनता से मक्कारी है।
गहरी जड़ें वंशवाद की,
नेता की बलिहारी है।
जन सेवक कहलाते जो,
गाड़ी-घर सरकारी है।
© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
01-01- 2022
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