श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का हिन्दी बाल -साहित्य एवं हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य” के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा “भोग”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 103 ☆
☆ लघुकथा — भोग ☆
मकर संक्रांति के दिन थाली में सजे चढ़ावे को देखकर उसकी आंखों में चमक आ गई। उसने चढ़ावा उठाया। एक अखबार में रखा। फिर दौड़ पड़ा।
दूर सामने एक झोपड़ी थी। उसमें गया। बिस्तर पर बीमार बचा लेटा हुआ था, “ले दोस्त! यह प्रसाद है। खा लेना। तेरे शरीर में कुछ ताकत आ जाएगी,” कहते हुए वापस झोपड़ी से बाहर निकल गया।
देखा। सामने पिताजी किमकर्तव्यविमूढ़ से खड़े थे।
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