प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा रचित एक भावप्रवण कविता “अनुपम वीर सुभाष”। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। )
☆ काव्य धारा 65 ☆ अनुपम वीर सुभाष ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆
जिसके गौरव से गौरवांवित भारत का इतिहास है
उन महान पुरुषों में से एक अनुपम वीर सुभाष हैं ।
एक चरित्र अनोखा ऐसा जिसके प्रखर प्रकाश में
सभी दूसरे तारे धूमिल से दिखते आकाश में ॥
जिसे गृहस्थी , सुख – सपना सब लगता था जंजाल सा
या ऊँची शिक्षा भी जिसने रखी न वैभव लालसा ॥
उपन्यास सी जिसकी जीवन – गाथा कई आयाम की
जिसने कभी न की आकांक्षा कहीं , किसी आराम की ॥
दृष्टि रही पाने स्वदेश की आजादी का रास्ता
लक्ष्य एक ही रहा , रखा न अधिक किसी से वास्ता ॥
दल के भीतर भी विरोध का गरल पान कर शांति से
होकर दूर भ्रांति से नाता जोड़ा निश्चित क्रांति से ॥
अपना दर्शन और दिशा ले आगे बढ़ते शान से
अमर आज भी जो जग में है , जन मन में सम्मान से ॥
छोड़ा हिन्द , हिन्द के सुख हित नूतन सैनिक वेश ले
“ तुम दो खून मुझे , मैं दूंगा आजादी ‘ का संदेश दे ॥
एक धारणा , एक साधना , चिन्ता गहन , समान नित
नारा था ‘ जयहिन्द ‘ शपथ थी मर मिटने की देश हित
था मन अनुरंजित भारत माँ के सच्चे अनुराग से
कभी न दम ली रहा खेलता जीवन भर बस आग से ॥
गठित फौज आजाद हिन्द कर , खुद उसका नेतृत्व कर
आजादी की विजय पताका , लाते अपने साथ घर
अकथ परिस्थितियों में बेबस बढ़ते निज अभियान में
हुआ लुप्त , लग गई आग थी कहते उनके यान में ॥
उस महान की याद सँजोये दुखी बहुत इतिहास है
क्योंकि आज भी ‘ कहाँ गया वह ? ‘ कोई प्रमाण न पास है ।
वर्षों बाद आज भी उसकी स्मृति में सम्मान से
भारत में ‘ जयहिन्द ‘ का नारा गूँज रहा अभिमान से ॥
स्वाभिमान , संकल्प , कर्म पर थी सुभाष की आस्था
जो मानव की कीर्ति भवन तक पहुँचाने का रास्ता ॥
उसके पावन देशप्रेम को , साहसमय अभियान को
आओ सब मिल नमन करें , हम वीर सुभाष महान को ॥
तेइस जनवरी आज जन्मतिथि उस भारत के लाल की
जिसकी प्रेरक जीवन यात्रा पावन याद उभारती ॥
इस दिन ने ही भारत माँ को दिया सपूत सुभाष था
जिस पर भारत जन मानस का अडिग अमर विश्वास था ।
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
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