श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है बुंदेली गीत “नहीं रहा वह कभी अकेला…..”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 17 – सजल – नहीं रहा वह कभी अकेला… ☆
समांत- एला
पदांत- अपदांत
मात्राभार- 16
राजनीति में बड़ा झमेला।
सबका-अपना खुला तबेला।।
नेतागिरी चलाने खातिर,
मिडयाई सरकस का मेला।
हर चुनाव की एक कहानी,
टूटी-टांग से होता खेला।
फौज पली है उनकी अपनी,
जनता खाती रहे करेला।
एक बार जो चुनकर आता,
नहीं रहा वह कभी अकेला।
कर्मी चरणदास कहलाते,
जीवन भर वह खाता केला।
भले बुरे की परख किसे अब
फिर भी चला रहे हैं धेला।
राजनीति के कुशल खिलाड़ी,
सबने पाल रखे हैं चेला।
शासन तंत्र चले जब पीछे,
जनता का चलता है रेला ।
© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
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