श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है एक भावप्रवण कविता “माघ का महीना ….”। इस विचारणीय रचनाके लिए श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ जी की लेखनी को सादर नमन।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 112 ☆
कविता –? माघ का महीना कड़कड़ाती ठंड, बड़े भाग्य शाली हैं बसे है रेवा खंड ?
शंभु पसीना बन कर निकली, मां नर्मदा बेटी समान
माघ महिना तिल दान स्नान, पूजे नर्मदा सरिता जान।
बहे नर्मदा अविरल धारा, शिव शंभु ने दिया वरदान
कण-कण शंकर हर कंकण, दर्शन मात्र पून्य महान।
मकर वाहिनी सरिता नर्मदा, निश्चल तेज बहे छल छल
घाट घाट को खूब संवारती, श्वेत जल धार बहे निर्मल।
साधु संतो की अमृत वाणी, गुजें हर पल वेदों का स्वर
त्रिपुर सुन्दरी मां विराजती, भेड़ाघाट नर्मदा तेवर।
पंचवटी में नौका विहार, सबके मन करती खुशहाल
संगमरमर की सुंदर आभा, मूरत बन कर करें निहाल।
तीर्थ स्नान बारम्बार, दर्शन मात्र मां नर्मदा
भक्तों का करती कल्याण स्मरण करें नित भोर सर्वदा।
अमरकंटक से निकली नर्मदा, सतपुडा के घने जंगल
सागौन नीलगिरी और पलाश, वृक्ष साधे नभ मंडल।
भेट चढ़ाएं लाल चुनरिया, भोग लगे चना अरु खिचड़ी
भक्त जनों की दुख पीड़ा, कष्ट हरे संवारती बिगड़ी।
आरती वंदन पुन्य सलीला, माघ महिना लगता मेला
दूर दूर से दर्शन को आए, घाटन घाट सजा रंगीला।
मां नर्मदा महाआरती, करती भक्तों का कल्याण
जनम जनम के पाप कटे, नित करते जप और ध्यान।
© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈