श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है बुंदेली गीत  “हिलमिलकर ही जीवन जीना… । आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 19 – सजल – हिलमिलकर ही जीवन जीना

समांत- आई

पदांत- अपदांत

मात्राभार- 16

 

जाँगर-तोड़ी करी कमाई ।

बुरे वक्त में काम न आई।।

 

खूब सुनहरे सपने देखे,

नींद खुली तो थी परछाई।

 

घुटने टूटे कमर है रूठी,

खुदी बुढ़ापे की है खाई।

 

लाचारी की चादर ओढ़ी,

सास-बहू के बीच लड़ाई।

 

हँसी खुशी जीना था जीवन, 

सिर-मुंडन को खड़ा है नाई।

 

मंदिर जैसे होते वे घर ,

सुख-शांति की हुई निभाई।

 

हिलमिलकर ही जीवन जीना,

इसमें सबकी बड़ी भलाई।

 

©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

7 जुलाई 2021

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)-  482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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