श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी अर्ध शताधिक अलंकरणों /सम्मानों से अलंकृत/सम्मानित हैं। आपकी लघुकथा  रात  का चौकीदार”  महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9वीं की  “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित। आप हमारे प्रबुद्ध पाठकों के साथ  समय-समय पर अपनी अप्रतिम रचनाएँ साझा करते रहते हैं। आज  नर्मदा जयंती के पुनीत अवसर पर प्रस्तुत है भावप्रवण रचना “जैसे-जैसे उथली होती गई नदी…”)

☆  तन्मय साहित्य  #120 ☆

☆ जैसे-जैसे उथली होती गई नदी… ☆ श्री सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ ☆

जैसे-जैसे उथली होती गई नदी

वैसे-वैसे अधिक उछलती गई नदी।

 

अपने मौसम में, प्रभुता पा बौराई

तोड़ दिए तटबंध, मचलती गई नदी।

 

तीव्र वेग से आगे बढ़ने की चाहत

प्रतिपल तिलतिल कर के ढलती गई नदी। 

 

हवस भरे मन में कब सोच समझ रहती             

उद्वेलन में रूप बदलती गई नदी।

 

उतरा ज्वर यौवन का तन-मन शिथिल हुआ

मदहोशी में, खुद को छलती गई नदी।

 

बनी कोप भाजन अपनों से ही वह जब

है अंजाम किए के, जलती गई नदी।

 

तेवर सूरज के सहना भी तो  जायज

हो सचेत यूँ  स्वयं सुधरती गई नदी।

 

© सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश, अलीगढ उत्तरप्रदेश  

मो. 9893266014

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

5 1 vote
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments